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________________ जावन क्या ह ? (७ वैज्ञानिक उपकरणों ने मनुष्य को बहुत सूक्ष्मता की दिशा में प्रस्थित किया है—आज कोरी स्थूल बातों पर आदमी जी नहीं सकता | धर्म जो कोरी मोटी-मोटी बातें बताता है नाम जपो, यह करो, वह करो, मुझे लगता है कि ये बातें बहुत बड़ा भला नहीं कर सकतीं। जब तक हमारे जीवन के सूक्ष्म रहस्यों का उद्घाटन नहीं हो जाता तब तक भला नहीं हो सकता । आज की शिक्षा की सबसे बड़ी दुर्बलता और कमजोरी यह है कि विद्यार्थी को बहुत कुछ बताया जाता है, किन्तु जीवन के बारे में कुछ भी नहीं बताया जाता । ग्रेजुएट, पोस्ट-ग्रेजुएट होने के बाद कोई विद्यार्थी कॉलेज से निकलता है, उसे पूछा जाए जीवन के बारे में तो बिलकुल निषेध का उत्तर मिलता है । कुछ भी नहीं जानता । बड़ी बात छोड़ दूं, वह श्वास के बारे में भी नहीं जानता । शरीर के बारे में भी नहीं जानता-आत्मा की बात तो बहुत दूर की बात | आज का धार्मिक आदमी आत्मा है, पमात्मा है, जगत् है, इन प्रश्नों में तो उलझ जाता है और अपने अस्तित्व के बारे में कभी चिंता नहीं करता । एक क्रम होना चाहिए, आत्मा तक पहुंचने के लिए पहले इस स्थूल शरीर को समझा जाए । स्थल शरीर को समझने के बाद श्वास की क्रिया को समझा जाए । श्वास को समझने के बाद प्राण को, इन्द्रियों को, मन को और चित्त को जाना जाए । चित्त के बारे में हमारी कोई जानकारी नहीं है। ___ लुधियाना में मेडिकल कॉलेज के प्रोफेसर डॉ० मुखर्जी बहुत परिचित हो गये थे । उन्होंने ध्यान-योग का साहित्य पढ़ा था । एक दिन वे बोलेमहाराज ! आपकी ध्यान-योग संबंधी पुस्तकों में 'चित्त' और मन को दो मानकर बहुत विस्तार से समझाया है । हम मन 'माइंड' को तो जानते हैं पर चित्त को नहीं जानते । मेडिकल साइंस में माइंड तो है, पर इससे परे चित्त जैसी कोई संज्ञा नहीं है | आपके अनुसार 'चित्त की परिभाषा क्या है, मैं जानना चाहता हूं ।' मैंने बताया, उनकी समझ में आ गया । फिर उन्होंने एक नोट लिखा और विश्वविद्यालय के बड़े प्रोफेसर के पास उसे भेजा । मैंने पूछा-आपने ऐसा क्यों किया ? उन्होंने कहा—मैंने उनसे यह पहले पूछा था कि मन और चित्त में क्या अन्तर है ? वे उसे बता नहीं पाये । अब जब मैं समझ गया हूं तो मैंने नोट के साथ उनको भेजा है कि भारतीय दर्शन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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