________________
७२
कपिल : चाह से अचाह की ओर
ब्राह्मण का नाम था कपिल । राजा के पुरोहित का पुत्र । उसने एक दिन देखा-मां रो रही है। मां का रोना उसे अच्छा नहीं लगा। वह मां के पास गया और बोला- 'मां! तुम क्यों रो रही हो ! अपने घर में कोई कमी नहीं है और मैं तुम्हारे प्रति विनम्र हूं, आज्ञाकारी हूं। तुम चाहो वैसा करूं फिर तुम्हें रोने की जरूरत क्या है?"
'बेटा! तुम इस बात को मत पूछो?"
'नहीं मां ! मैं जानना चाहता हूं।'
महावीर का पुनर्जन्म
'बेटा! आज तुम्हारे घर के आगे से घोड़े पर सवार आदमी गुजरा था, उसके सिर पर छत्र था। एक दिन तेरे पिता भी ऐसे ही जाते थे । वे राजपुरोहित थे किन्तु अचानक चल बसे। तू छोटा था। राजा ने दूसरे व्यक्ति की नियुक्ति कर दी। आज उसे देखा तो मुझे उन दिनों की स्मृति आ गई और आंखों से आंसू बरस पड़े ।'
'मां ! उसे राजपुरोहित बनाया, मुझे क्यों नहीं बनाया'
'बेटा! तू पढ़ा-लिखा नहीं था।'
'क्या पढ़ने से वह पद मुझे मिल सकता है?"
'हां। पर यहां व्यवस्था नहीं है । तू श्रावस्ती में चला जा । वहां तेरे पिता का एक मित्र है, वह तुझे पढ़ा सकता है ।'
वह श्रावस्ती चला गया। उसने पढ़ाई की और होशियार भी हो गया पर उसके साथ एक समस्या भी जुड़ गई। उसका एक युवती के साथ सम्पर्क स्थापित हो गया । वह युवती दासकन्या थी। एक बार दास महोत्सव मनाया जा रहा था । दासकन्या ने कहा- 'मेरे पास पैसे नहीं है ।'
कपिल बोला- 'पैसा तो मेरे पास भी नहीं है।'
दासकन्या ने उपाय बताया- 'एक बात सुनो। यहां प्रातःकाल राजा के पास जो सबसे पहले जाता है, वह उसे दो मासा सोना देता है । आप वहां जाएं । आपको पैसा मिल जाएगा और मेरा काम बन जाएगा।'
कपिल को नींद नहीं आई। वह जल्दी उठकर रात को ही घर से चल पड़ा। पुलिस ने उसे पकड़ लिया। पुलिस ने सोचा- कौन रात में घूम रहा है? कोई चोर होगा ? प्रातः उसे राजा के सामने प्रस्तुत किया गया। उसने राजा को सारी घटना सही-सही बता दी। राजा को उसकी बात पर विश्वास हो गया। राजा ने कहा- मैं तेरी सचाई से प्रसन्न हूं। अब जो चाहो, मांग लो ।
कपिल ने कहा- आप मुझे जरा सोचने का मौका दें । वह एकांत में चला गया, उसने चिंतन करना शुरू किया। उसने सोचा- जब राजा खुश है तब दो मासा सोना ही क्यों मांगू? मैं उससे ज्यादा भी मांग सकता हूं । भीतर की मांग बढ़ती चली गई । वह बढ़ते-बढ़ते करोड़ों तक पहुंच गई और राजा से राज्य मांग लेने की बात भी मन में उभर आई। उस समय कपिल के मन में एक प्रश्न
उठा
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org