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________________ रूपान्तरण का प्रतिनिधि ऋषि ७३ पृष्टवान् कपिलः प्रश्नमन्तः शान्तमना अमुम्। कोट्या तृप्तो भविष्यामि? स्वयं संबुद्धतां गतः।। अत्यन्त शांत मन से कपिल ने अपने आप से पूछा-क्या करोड़ों की संपत्ति पाकर मैं तृप्त हो जाऊंगा? और इस प्रश्न को पूछते-पूछते वह स्वयं सम्बोधि को प्राप्त हो गया। 'क्या करोड़ों से मैं तृप्त हो जाऊंगा?' वह इससे आगे नहीं चल सका, वहीं थम गया। हवा थम गई। वातावरण बिल्कुल नीरव बन गया। उत्ताल तरंगों वाला समुद्र जैसे स्थिर हो गया। बिलकुल शांत खड़ा है कपिल। उस समय उसे जाति-स्मरण ज्ञान हुआ, पूर्वजन्म का स्मरण हुआ, पूर्व की सारी घटनाएं साक्षात् हो गई। राजा ने सोचा-ब्राह्मण का लड़का आया ही नहीं। राजा को पता चला, वह एकदम शांत खड़ा है। राजा उसके पास गया, बोला- 'तुम क्या चाहते हो?' उसने कहा-'मुझे कुछ भी नहीं मांगना है। मुझे कुछ नहीं चाहिए।' राजा विस्मय से भर गया। यह रूपान्तरण कैसे हुआ? आकृति बदल गई, चेहरा बदल गया, भावभंगिमा बदल गई। राजा ने पूछा- क्यो नहीं चाहिए?' कपिल ने कहा- 'मैंने अपने आप से प्रश्न पूछा और मुझे समाधान मिल गया। अब मेरी चाह मिट गई है। रूपान्तरण का प्रतिनिधि ऋषि बहुत महत्त्वपूर्ण बात है अपने आपसे प्रश्न पूछना। लोग दूसरों से प्रश्न पूछना बहुत जानते हैं किन्तु अपने आपसे पूछना बहुत कम जानते हैं। यदि अपने आपसे पूछना सीख जाएं तो दूसरों से पूछने की जरूरत कम हो जाए। अब कपिल वह कपिल नहीं रहा। राजा कपिल के संकल्प के आगे प्रणत था। वह रूपान्तरण का प्रतिनिधि ऋषि बन गया। व्यक्ति में कैसे रूपान्तरण होता है, इसका प्रतिनिधि उदाहरण है कपिल।। प्रश्न होता है-क्या व्यक्ति इतना बदल सकता है? क्या व्यक्तित्व का इतना रूपान्तरण सम्भव है? आज मनोविज्ञान ने व्यक्तित्व के परिर्वतन की बहुत समीक्षा की है। यह मनोविज्ञान का मुख्य विषय बन गया है। क्या व्यक्ति परिवर्तित होता है? और होता है तो कैसे होता है? उसका प्रेरक-तत्त्व क्या है? उसके उद्दीपन क्या हैं? आदि-आदि विषयों पर मनोविज्ञान ने विस्तृत विमर्श किया परिवर्तन के घटक तत्त्व व्यक्तित्व में परिवर्तन होता है किन्तु वह धीरे-धीरे बदलता है। आज ही साधना शुरू की और आज ही रूपान्तरण हो जाए, ऐसी घटना कभी-कभी होती है। डाकू अचानक संत बन जाता है और बिलकुल अकिंचन भावना से ओतःप्रोत हो जाता है, पर ये घटनाएं असामान्य घटनाएं हैं। मनोविज्ञान की दो शाखाएं हैं-असामान्य मनोविज्ञान और सामान्य मनोविज्ञान। ये असाधारण घटनाएं हैं, इनको सामान्य घटना नहीं कहा जा सकता। ये कभी-कभी घटित होती हैं, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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