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________________ ११ रूपान्तरण का प्रतिनिधि ऋषि अरण्य का निर्जन स्थान। पांच सौ चोरों का एक घेरा और उनसे घिरा हुआ एक मुनि। नाम था कपिल। चोरों ने जांच की किन्तु मुनि के पास कुछ भी नहीं था। पल्लीपति ने कहा-यह तो कोई भिक्षु है इसके पास कुछ भी नहीं है। इसे छोड़ दो। मुनि को छोड़ दिया गया। मुनि मार्ग पर आगे बढ़ने लगे। पल्लीपति ने पुनः कहा-मुनिवर! आप जा रहे हैं, जाते-जाते गीत तो सुना दीजिए। चोरों की प्रार्थना पर मुनि ने एक अध्ययन गा दिया। उत्तराध्ययन का आठवां अध्ययन कपिल मुनि द्वारा उच्चरित है। उसका ध्रुवपद है ___ अधुवे असासयम्मि संसारम्मि दुःख पउराए। किं नाम होज्ज तं कम्मयं, जेणाहं दोग्गइं न गच्छेज्जा।। कपिल मुनि ने कहा-यह संसार अध्रुव है, अशाश्वत है और दुःख बहुल है। ऐसा कौनसा कर्म-अनुष्ठान है, जिससे मैं दुर्गति में न जाऊं? इस ध्रुवपद में चोर उलझ गए। कोई-कोई ऐसा समय होता है, व्यक्ति के अंर्तमन में एक प्रश्न उभर जाता है। 'वह कौन-सा कर्म है जिससे हमारा भविष्य उज्ज्चल बने।' इस प्रश्न ने चोरों के मानस को प्रकंपित कर दिया। हर व्यक्ति के मन में अपना भविष्य उज्जवल बनाने की आकांक्षा होती। चोरों के मन में भी यही स्वर प्रतिध्वनित होने लगा। वे अपने आप इस प्रश्न का समाधान पाने के लिए तत्पर हो गए। विकास और सफलता का सबसे बड़ा हेतु है अपने आप से प्रश्न पूछना। थावच्चापुत्र ने अपने आप से प्रश्न पूछा-यह गीत क्या है? केवल इस प्रश्न ने थावच्चापुत्र को बिलकुल बदल दिया। पहले अपने आप से पूछा और फिर मां से पूछा। अपने मन में जो प्रश्न जगा, वह थावच्चापुत्र के रूपान्तरण का हेतु बन गया। नचिकेता ने पूछा-यह मृत्यु क्या है? इस मृत्यु के प्रश्न ने नचिकेता को अमर बना दिया। वह मृत्यु से अमरत्व की ओर चला गया। मार्क्स का लड़का गरीबी के कारण भूख से तड़फ रहा था और भूख से तड़फते-तड़फते जब उसने प्राण त्याग दिया तब मार्क्स के मन में एक प्रश्न उठा-यह भूख क्या है? इस प्रश्न ने मार्क्सवाद या साम्यवाद को जन्म दे दिया। जिस व्यक्ति ने गहराई में जाकर अपने आप से कोई प्रश्न पूछा है उसे समाधान मिला है, इसीलिए यह बहुत प्रेरक बात हो सकती है प्रश्नः प्रश्नः पुनः प्रश्नः, स्वं प्रति प्रतिपद्यताम् । उत्तरे परिवर्तेत, स्वयं प्रश्नः समाहितः।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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