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________________ क्यों नहीं हो रहा है योगक्षेम की ओर प्रस्थान? ६६ वह जागा नहीं है, अपना प्रभु जागा नहीं है। इतने वर्ष के बाद जो जागना चाहिए, वह सोया का सोया पड़ा है। मंदिर में भगवान को रोज जगाया जाता है। पुजारी आता है और भगवान् को जगाता है। यदि पुजारी नहीं आए तो भगवान् सोया ही रहता है। यह योगक्षेम में सबसे बड़ी बाधा है। जिसे जगना चाहिए, वह सोया हुआ है और जिसे सोना चाहिए, वह जगा हुआ है। किसे जगाए : किसे सुलाएं स्थानांग सूत्र में बतलाया गया है जो मिथ्यादृष्टि या अव्रती है, उसके पांच जागे हुए हैं और जो साधु, श्रावक या सम्यक् दृष्टि है, उसके पांच सोए हुए हैं। पांच इन्द्रियां या पांच इन्द्रियों के विषय एक अविरत व्यक्ति के जागे हुए हैं और विरत व्यक्ति के सोए हुए हैं। कभी-कभी ऐसा होता है-जिस चेतना को जागना चाहिए, वह तो सोई हुई रह जाती है किन्तु जिन इन्द्रियों और विषयों को सोना चाहिए, वे जागे हुए रह जाते हैं। यह विपर्यास है। इसको मिटाए बिना योगक्षेम की ओर प्रस्थान सम्भव नहीं बनता। प्रत्येक साधक को इस बात का निरन्तर चिन्तन करना चाहिए उसे किसे सुलाना है और किसे जगाना है? जो जागना चाहिए, वह जगा या नहीं? जिसे सोना चाहिए, वह सोया या नहीं? यदि ये प्रश्न उभरते हैं तो विकास का मार्ग स्पष्ट होता चला जाता है। विकास की न्यूनतम मर्यादा है-'आत्मा अलग और पुद्गल अलग' इस बात की निरन्तर स्मृति। जब यह तथ्य विस्मृत होता है, तब प्रश्न उभरता है-क्यों नहीं हो रहा है योगक्षेम की ओर प्रस्थान और जब यह तथ्य सतत स्मृति में रहता है तब यह प्रश्न समाहित हो जाता है। उस समय व्यक्ति का मानस बोल उठता है—हो रहा है योगक्षेम की ओर प्रस्थान । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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