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दुःख का मूल अज्ञान
आज आदमी कितने नमकीन और चटपटे पदार्थ खाता है । भुजिया, कचौड़ी आदि अनेक चीजें खा लेता है । बेचारा गुर्दा कितना नमक छानेगा, कितना नमक निकालेगा ? डाक्टर कहते हैं- ज्यादा नमक खाना गुर्दे की बीमारी को निमन्त्रण देना है, हाईब्लड प्रेशर की बीमारी को निमंत्रण देना है। हार्ट, फेफडा, गुर्दा, लीवर, तिल्ली आदि शरीर के मुख्य काम करने वाले अवयव हैं। यदि ये अवयव मजबूत बने रहते हैं तो व्यक्ति दीर्घकाल तक स्वस्थ रहता है, अवयवों की कार्य-क्षमता सम्यक् बनी रहती है । शरीर विज्ञान में इस प्रश्न पर भी विमर्श किया गया—हार्ट की आयु कितनी है? एक शरीर वैज्ञानिक के अनुसार हार्ट, लीवर, गुर्दा आदि अवयवों की कुल मिलाकर कार्य करने की क्षमता ३०० वर्ष की होती है। व्यक्ति की हड्डियां और गुर्दा तीन सौ वर्ष तक काम कर सकता है किन्तु मनुष्य अपने अज्ञान के कारण, भोजन के अविवेक के कारण उन्हें सौ वर्ष तक भी सक्षम बनाए नहीं रख सकता । अधिकांश व्यक्ति सत्तर वर्ष तक भी कार्यक्षम नहीं रह पाते ।
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स्थानांगसूत्र में रोग का एक कारण बतलाया गया है— अतिआहार । अकाल मृत्यु का मुख्य कारण है- आहार का अविवेक । अत्यन्त आवेगशील होना, क्रोध करना, अधिक कुंठा का जीवन जीना, बात-बात में चिड़चिड़ा बन जाना अकाल मृत्यु को निमंत्रण देना है। यदि अनिमंत्रण का विज्ञान जाग जाए, अज्ञान का पर्दा हट जाए, हेय और उपादेय का विवेक स्पष्ट हो जाए तो अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है, रोग और बुढ़ापे से बचा जा सकता है ।
जीवन का एक संदर्भ है व्यवहार । हेय और उपादेय का ज्ञान व्यवहार के क्षेत्र में भी अत्यन्त उपयोगी बनता है। हेय और उपादेय का विवेक नहीं होता है तो व्यावहारिक जीवन में भी समस्याएं उभर आती हैं ।
अज्ञान के तीन अर्थ
तर्कशास्त्र या दर्शनशास्त्र के संदर्भ में अज्ञान के तीन अर्थ बन जाते है - संशय, विपर्यय और न जानना । एक व्यक्ति नहीं जानता है और कुछ गलत व्यवहार कर लेता है तो वह क्षम्य भी हो जाता है किन्तु विपरीत ज्ञान बहुत बाधा डालता है। पारस्परिक सौहार्द का, संबंध अच्छा रखने का साधन है मृदु व्यवहार किन्तु व्यक्ति कटु व्यवहार करता है। मृदु वचन बोलने से समस्या का समाधान हो सकता है फिर भी वह खीर में मूसल डालने जैसी बात कह देता है । व्यक्ति के मानस में यह धारणा जमी हुई है - वह व्यक्ति सहता है, जो कमजोर होता है। एक व्यक्ति ने कुछ कहा और सामने वाला व्यक्ति ईंट का जवाब पत्थर से दे तो कहा जायेगा - बड़ा पराक्रमी आदमी है। अगर वह सुन लेता है और कुछ बोलता नहीं है तो कहा जाएगा- क्या तुम सत्त्वहीन हो, मिट्टी के हो? तुम्हें मुंहतोड़ जवाब देना चाहिए, जिससे यह दुबारा कहने का साहस ही नहीं करे, यह सीख और मिल जाती है ।
यह है व्यवहार का अज्ञान। इस अविद्या के कारण व्यक्ति पग-पग पर दुःखो की सृष्टि कर लेता है। यदि यह अज्ञान मिट जाए, ध्यान की चेतना जाग जाए तो स्थिति बदल सकती है। जितने भी कष्ट हैं, वे अज्ञान जनित हैं ।
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