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________________ महावीर का पुनर्जन्म कुछ लोगों को अपने आपको बूढ़ा कहने में बड़ा रस आता है। कुछ संन्यासी अपनी अवस्था बढ़ा-चढ़ा कर बताते हैं । वे होते हैं पचास वर्ष के और बताते हैं नब्बे वर्ष या सौ वर्ष । संन्यासियों में यह एक आम अवधारणा है - संन्यासी जितना वृद्ध होता है, वह उतना ही पूज्य होता है। संन्यासी अपने आपको बहुत जल्दी बूढ़ा मानने लग जाता है। वैज्ञानिक युग में बुढ़ापे की यह अवधारण बदल रही है । आज बुढ़ापे का मानदण्ड भी बदल रहा है । यह युग परिवर्तन का प्रभाव है। ४६ बुढ़ापे का एक कारण है - भोजन का अज्ञान । अज्ञानजनित भोजन बुढ़ापे को जल्दी निमंत्रण देता है । शरीर के लिए दूध की भी एक मात्रा होती है । पोषणशास्त्र के अनुसार एक साथ पाव-डेढ़ पाव से ज्यादा दूध पीना पेट को बिगाड़ना है, बुढ़ापे को जल्दी बुलाना है। उसके अनुसार पूरे दिन शरीर को दो तोला घी की जरूरत होती है । इतने घी को ही आसानी से पचाया जा सकता है किन्तु व्यक्ति अपने अज्ञान के कारण इस सीमा का अतिक्रमण करता है। प्रसिद्ध कहावत है- 'घी खाओगे तो गोडा चलेगा' यह अवधारणा बुढ़ापे का कारण बन रही है। अधिक भोजन भी जल्दी बुढ़ापा लाता है । पोषणशास्त्रीय दृष्टिकोण प्रोटीन, वसा, कार्बोहाइड्रेट, कुछ लवण, विटामिन आदि भोजन के मूल तत्त्व हैं किन्तु उनकी एक सीमा आवश्यक है । इनको पचाने वाले जो पाचक रस हैं, उनकी भी एक निश्चित सीमा है। जितने पाचक रस हैं, उनका रस स्राव प्रकृति द्वारा निर्धारित है। प्रोटीन को पचाने के लिए कितने रस का स्राव होगा? वसा को पचाने के लिए कितने रस का स्राव होगा ? अमुक अमुक तत्त्व को पचाने के लिए कितने रस का स्राव होगा? इसकी सारी व्यवस्था निर्धारित है। यदि व्यक्ति भोजन ज्यादा करता है या अमुक पदार्थ को ज्यादा मात्रा में खाता है और उन सबको पचाने वाला पाचक रस कम उपलब्ध होता है तो वह भोजन सड़ांध पैदा करेगा, उससे दिमाग भारी बनेगा, बुद्धि की निर्मलता कम होगी, शारीरिक और मानसिक शक्ति क्षीण होगी, बुढ़ापा जल्दी उतर आएगा । ऐसा लगता है--आज भोजन का अज्ञान खुलकर बोल रहा है। भोजन बनाने वाले और भोजन खाने वाले- दोनों इस अज्ञान से मुक्त नहीं है। भोजन बनाने वालों को भी यह पता नहीं है कि खाना कैसे बनाना चाहिए और खाने वालों को भी पता नहीं है कि खाना कैसा होना चाहिए ? गेहूं का फुलका इसका एक उदाहरण बन सकता है। व्यक्ति मानता है-फुलका (चपाती) कोमल-कोमल होना चाहिए। देखने में अच्छा होना चाहिए। गेहूं का सार तत्व है चोकर। गेहूं से उसे निकाल दिया जाता है, फेंक दिया जाता है और जो निःसार बचता है, उसका फुलका बनाया जाता है । चोकर में विटामिन डी होता है। । जो चोकर सहित रोटी खाता है, उसे बाहर से अतिरिक्त विटामिन डी लेने की जरूरत नहीं पड़ती। व्यक्ति अपने अज्ञान के कारण इस सहज प्राप्त सारतत्त्व से वंचित रह जाता है । पोषणशास्त्र के अनुसार शरीर के लिए दो ग्राम नमक आवश्यक होता है । वह सामान्य भोजन में सहज उपलब्ध हो जाता है किन्तु Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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