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दुःख का मूल : अज्ञान
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सोच्चा जाणइ कल्लाणं, सोच्चा जाणइ पावगं।
उभयपि जाणइ सोच्चा, जं छेयं तं समायरे।। हेय और उपादेय का विवेक, इसका नाम है ज्ञान। इनका विवेक न होना अज्ञान है। यदि इस बिन्दु पर विमर्श किया जाए तो निष्कर्ष होगा–जितने दःख होते हैं, उनका कारण है हेय और उपादेय का अज्ञान। आमंत्रण : निमत्रण
जीवन का एक संदर्भ है बुढ़ापा। अवस्था के परिपाक से प्रत्येक व्यक्ति बूढ़ा होता है। एक अवस्था के बाद बुढ़ापा आता है। एक बुढ़ापा होता है निमंत्रित। व्यक्ति बुढ़ापे को निमंत्रण देकर बुला लेता है। यह परिपक्व अवस्था से पूर्व आने वाला बुढ़ापा है।
जीवन का एक संदर्भ है बीमारी। शरीर भी बीमारी से ग्रस्त हो जाता है, मन भी बीमारी से ग्रस्त हो जाता है। कभी बीमारी प्राकृतिक कारणों से आती है और कभी व्यक्ति उसे निमंत्रण देकर बुला लेता है।
___ दो शब्द बहुत प्रचलित हैं-आमंत्रण और निमंत्रण। आमंत्रण में अनिवार्यता नहीं है। किसी व्यक्ति को आमंत्रित किया गया। उसकी इच्छा है, वह उसे स्वीकार करे या न करे। निमंत्रण में अनिवार्यता है। निमंत्रण में जाना ही पड़ता है। मुनि के लिए विधान है-एक साधु को निमंत्रण भोजन नहीं लेना चाहिए क्योंकि निमंत्रण में अनिवार्यता ही होती है। आमंत्रण में इच्छा प्रमुख होती है, निमंत्रण में इच्छा प्रधान नहीं रहती।
आमंत्रित बुढ़ापा अवस्थाजन्य होता है, आमंत्रित बीमारी प्राकृतिक होती है किंतु निमंत्रित बुढ़ापा या रोग मनुष्य के हेय और उपादेय के अज्ञान से आते
निमंत्रितं स्याद् वार्धक्यं, रोगा अपि निमंत्रिताः।
अनिमंत्रणविज्ञानं, ज्ञानं प्राहुर्बुधा इदम् ।। बुढ़ापा निमंत्रित आता है। रोग भी निमंत्रित होते हैं। ज्ञानी व्यक्तियों ने अनिमंत्रण विज्ञान को ज्ञान कहा है। विद्यमान है अज्ञान
ज्ञान की परिभाषा बन गई-अनिमंत्रण विज्ञान। निमंत्रण न देने का विज्ञान है ज्ञान। प्रश्न हो सकता है-व्यक्ति बुढ़ापे को निमंत्रण क्यों देगा? बीमारी को निमंत्रण क्यों देगा? यह तर्क बिल्कुल सही है किन्तु मनुष्य के भीतर हेय और उपादेय का अज्ञान विद्यमान है। वह बुढ़ापे को निमंत्रण दिला देता है, बीमारी को निमंत्रण दिला देता है। जन्म मनुष्य के वश की बात नहीं है, वह नियति के हाथ में है। बुढ़ापा, बीमारी और मौत-ये तीनों मनुष्य के हाथ में है। अज्ञान के कारण इन तीनों को निमंत्रण दिया जाता है।
आगम साहित्य में माना गया है-सत्तर वर्ष से पहले आदमी बूढ़ा नहीं होता। चालीस वर्ष तक आदमी युवा होता है। चालीस से सत्तर वर्ष तक 'प्रौढ़ युवा' कहलाता है। बुढ़ापे का प्रारम्भ बिन्दु है सत्तर वर्ष, पर कभी-कभी पचास वर्ष का व्यक्ति भी अपने आपको बूढ़ा मानने लग जाता है।
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