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महावीर का पुनर्जन्म
प्रज्ञापराध
आयुर्वेद में वात, पित्त और कफ की विषमता को रोग का कारण माना गया है। रोग का एक कारण माना गया है प्रज्ञापराध
धीधृतिस्मृतिविभ्रष्टः, कर्म यत् कुरुतेऽशुभम् । प्रज्ञापराधं तं विद्यात, सर्वदोषप्रकोपणम् ।। बुद्ध्या विषमविज्ञानं, विषमं च प्रवर्तनम् । प्रज्ञापराधं जानीयान्, मनसोगोचरं हि तत् ।। यच्चान्यदीदृशं कर्म, रजोमोहसमुत्थितम् ।
प्रज्ञापराधं तं शिष्ट, ब्रुवते व्याधिकारणम् ।। धी, धृति और स्मृति भ्रष्ट व्यक्ति जो अशुभ कर्म करता है, वह प्रज्ञापराध है, जो सब दोषों को कुपित करने वाला है।
बुद्धि के द्वारा विषम विज्ञान का होना और विषम आचरण करना प्रज्ञापराध है। वह मन का विषय है।
__ जब रजोगुण और तमोगुण से व्यक्ति का ज्ञान आवृत होता है, आच्छन्न होता है तब वह प्रज्ञापराध में प्रवृत्त होता है और वही बीमारी का निमित्त बनता
अज्ञान की परिभाषा
सहज जिज्ञासा होती है-अज्ञान क्या है? अज्ञानी मनुष्य कौन है? अज्ञान की एक परिभाषा है-जो सम्पूर्ण ज्ञानी नहीं है, वह अज्ञानी है। जब तक केवलज्ञान उपलब्ध नहीं होता, व्यक्ति अज्ञानी रहता है। अज्ञान शब्द की व्यावहारिक परिभाषा है-एक व्यक्ति मैट्रिक तक पढ़ा और एक व्यक्ति बी.ए. कर चुका है। कहा जाएगा-पहला व्यक्ति दूसरे व्यक्ति की अपेक्षा अज्ञानी है। एक मुनि दशवैकालिक पढ़ चुका और एक मुनि द्वादशांगी का पारायण कर चुका। कहा जाएगा-दशवैकालिक पढ़ने वाला द्वादशांगी पढ़ने वाले की अपेक्षा अज्ञानी है। अज्ञान एक सापेक्ष शब्द है। इसकी निश्चित परिभाषा करना कठिन है।
आकाशवाणी हुई-सुकरात से बड़ा कोई ज्ञानी नहीं है। जनता सुकरात को धन्यवाद देने उमड़ी पड़ी। सुकरात ने कहा-यह गलत बात है। किसी ने गलत भविष्यवाणी कर दी। मैं ज्ञानी नहीं हूं। जनता ने सुकरात से कहा-हमारी देवी झूठ नहीं बोलती। आप इस उद्घोषणा को स्वीकार करें। सुकरात ने कहा-मैं अपने अज्ञान को जानता हूं। मैं सबसे बड़ा ज्ञानी कैसे हो सकता हूं? जनता ने देवी के समक्ष सुकरात का कथन प्रस्तुत किया। देवी बोली-दुनिया में सबसे बड़ा ज्ञानी वह होता है, जो अपने अज्ञान को जानता है।
उपाध्याय यशोविजयजी के शब्दों में अज्ञान की एक सुन्दर परिभाषा उपलब्ध होती है-हेयोपादेयविज्ञानं नो चेत् व्यर्थः श्रमः श्रुतौ-यदि हेय और उपादेय का विज्ञान नहीं जागा तो श्रुत में श्रम करना व्यर्थ है। जिसमें हेय और उपादेय का ज्ञान नहीं जागा, वह अज्ञानी है। हेय और उपादेय का ज्ञान न होने का कारण है अज्ञान। दशवैकालिक सूत्र में भी इस परिभाषा का समर्थन सूत्र
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