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________________ लेश्या : गंध, रस और स्पर्श ५१७ लेश्या के वर्ण, गंध, रस और स्पर्श के ऐसे परमाणु हमारे शरीर के भीतर आते हैं। क्या इनसे बीमारी पैदा नहीं होगी? बेचारे यंत्र क्या करेंगे? वे कैसे बीमारी को पकड़ पाएंगे? एक्सरे की पकड़ में कैसे आएंगे? ये वैज्ञानिक यंत्र और गेल्वेनोमीटर की सुइयां कहा तक सफल होंगी? इतने सूक्ष्म गंध, रस और स्पर्श के परमाणु हैं, जिनका हमें पता नहीं चलता। वे सूक्ष्म परमाणु अपना काम करते चले जाते है। भावविशुद्धि और लेश्या हम इस बिन्दु पर भावविशुद्धि का मूल्यांकन करें। भावविशुद्धि और लेश्या-दोनों जुड़े हुए हैं। भाव विशुद्ध होंगे तो लेश्या शुभ होगी। लेश्या शुभ होगी तो वर्ण, गंथ, रस और स्पर्श भी मनोरम होंगे। इस स्थूल जगत में गुलाब या केवड़ा की जो सुगन्ध होती है, उससे भी अनंतगुना अधिक सौरभ होती है लेश्या की गंध में। पका हुआ आम जितना मीठा होता है, शुभ लेश्या का उससे भी अनंतगुना अधिक मीठा रस होता है। सद्यः निःसृत नवनीत का जितना कोमल स्पर्श होता है, शुभ लेश्या का उससे भी अनंतगुना अधिक मृदु स्पर्श होता है। शिरीष का स्पर्श जितना कोमल और सुहाना होता है, शुभ लेश्या का स्पर्श उससे अनंतगुना ज्यादा कोमल है। लेश्या : वर्ण, गंध, रस और स्पर्श उत्तराध्ययन सूत्र में लेश्याओं के वर्ण, गंध, रस और स्पर्श का व्यवस्थित निरूपण हैलेश्या वर्ण गंध स्पर्श कृष्ण खंजन के मृत कलेवर तुंबे से करवत से अनंतसमान की गंध अनंतगुना गुना तीक्ष्ण से अनंतगुना कड़वा अधिक नील चाष पक्षी त्रिकुट से के परों के अनंतगुना समान तीखा कापोत कबूतर की कच्चे आम ग्रीवा के से अनंतगुना समान कसैला रस तैजस नवोदित सूर्य के समान पद्म हरिताल के समान सुगन्धित पुरुष पके हुए नवनीत एवं शिरीष से अनंतगुना आम से से अनंत गुना अधिक अनंतगुना मृदु खट्टा-मीठा सुगन्धित पुष्प विविध आसवों नवनीत एवं शिरीष से अनन्तगुना से अनन्तगुना से अनंत गुना मृदु अधिक अम्ल शक्कर से अनन्तगुना मीठा For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org शुक्ल शंख या चांदी के समान Jain Education International
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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