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लेश्या : पौद्गलिक है या चैतसिक
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हैं? दिन में अधिक क्यों नहीं सताते? जितना अजीर्ण होता है, वह प्रायः रात में ही क्यों होता है। दिन में कब अजीर्ण होता है? किसी अपवाद को छोड़ दें, प्रायः रात में ही होता है। वायु भी रात में अपना खेल दिखाती है। इन सबका कारण क्या है? जब तक सरज रहता है, ये सब शान्त रहते हैं। सर्य के अस्त होते ही सबको मौका मिल जाता है। चोरी करने का मौका भी रात को ही मिलता है। नींद भी रात में ही सताती हैं। जितने तामसिक भाव हैं, उन सबको रात में खुलकर अभिव्यक्त होने का अवसर मिल जाता है। रत्न चिकित्सा और लेश्या
सूर्य की एक लेश्या है। चन्द्रमा की भी लेश्या है। रत्नों की भी लेश्या है। ये सब नो-कर्मलेश्या हैं। रत्नों में सूर्य का प्रकाश बहुत संचित होता है। इसके आधार पर ही जेम्स थेरापी (रत्न चिकित्सा) का विकास हुआ है। रत्न चिकित्सा पर काफी साहित्य लिखा गया है। कलकत्ता के एक विद्वान हैं, भट्टाचार्य। वे इस मामले में काफी दक्ष हैं। रत्न का प्रभाव बड़ा विचित्र है। इसका कारण है सूर्य की रश्मियों का संचय।...
- बम्बई की घटना है। एक व्यक्ति निरन्तर बुखार से ग्रस्त रहता था। उसने बहुत दवाइयां ली पर बुखार नहीं उतरा। उसने रत्न चिकित्सक को अपनी समस्या बताई। रत्न चिकित्सक ने सारी स्थितियों का अध्ययन किया। उसने देखा-अंगुली में लाल माणक पहना हुआ है। समस्या समझ में आ गई। चिकित्सक ने कहा-इस माणक (रत्न) को अंगुली से निकाल दिया जाए। इसे इस कमरे में भी न रखा जाए। चिकित्सक का परामर्श स्वीकार कर लिया गया। जो बुखार इतनी दवाइयों से नहीं मिटा, वह उस रत्न को अंगुली से निकालने के बाद दूसरे दिन ही समाप्त हो गया।
यह रत्न के प्रभाव का निदर्शन है।
यदि रत्न का अनुकूल प्रभाव होता है तो वह व्यक्ति को निहाल कर देता है और यदि उसका प्रतिकूल प्रभाव होता है तो वह व्यक्ति को कंगाल भी बना देता है। उसका प्रभाव दोनों ओर होता है। यह नो-कर्मलेश्या-द्रव्यलेश्या का प्रभाव है।
पौगलिक लेश्या का अर्थ है-किरण, रश्मि, या ज्योति। ये यदि प्रशस्त होते हैं, तो बहुत लाभकारी होते हैं। यदि अप्रशस्त होते हैं तो बहुत हानिकारक होते हैं। हम रंगों के प्रति जागरूक बनें तो हानि से बच सकते हैं, बहुत लाभ उठा सकते हैं। किस रंग का कपड़ा पहनें? किस रंग का खाना खाएं? मकान या कमरे का रंग कैसा हो? इसका विवेक होना जरूरी है। रंग से उपजी समस्या -
एक सिनेमा हॉल में बहुत गहरा लाल रंग करवाया गया। जो दर्शक सिनेमा देखने जाते, वे सिर-दर्द से परेशान हो जाते। काफी दिनों तक यह क्रम चलता रहा। सिनेमा में दर्शकों की संख्या घटने लगी। एक दिन ऐसा आया-सिनेमा हॉल से घाटा होने लगा। मालिक समस्या और चिन्ता से घिर
गया। चपरासी ने मालिक से कहा-'क्या बात है? आप उदास क्यों हैं?' मालिक Jain Education International For Private & Personal Use Only
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