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________________ लेश्या सिद्धान्त : ऐतिहासिक अवलोकन ४६५ वह रूस में भी प्रचलित है। कहानियों का बहुत संक्रमण हुआ है। दूसरे देशों के यात्री यहां आते रहे हैं। वहां की कहानियां यहां पहुंची और यहां की कहानियां वहां पहुंच गई। हिन्दुस्तान का विचार और दर्शन दूसरे देशों में पहुंचा, बाहर का विचार और दर्शन हिन्दुस्तान में आया। आज हिन्दुस्तान में सात वार (Seven Days) प्रचलित हैं। ये कहां से आए हैं? रविवार, सोमवार, मंगलवार-इनका प्रचलन पहले भारत में नहीं था। हम कहानी के चरित्र को देखें, चाहे दूसरे महापुरुषों का चरित्र देखें, कहीं वार का उल्लेख नहीं है। तिथि और मास का उल्लेख मिल जाएगा किन्तु वार का उल्लेख नहीं है। सोमवार, मंगलवार-ये सब बाहर से आए हैं। इनका मूल उत्स हिन्दुस्तान में नहीं हैं। ये सारे कालान्तर में हिन्दुस्तान में सक्रांत हुए हैं। महाभारत में लेश्या प्रश्न है-लेश्या का सिद्धान्त कहां से आया? इसका मूल स्रोत क्या है? यह कहना बड़ा कठिन है कि सबसे पहले यह विचार किसने रखा किन्तु जितने प्रामणिक स्रोत हैं, जितने ग्रंथ और जितना साहित्य आज उपलब्ध है, उसके आधार पर विचार करें तो लेश्या की बात महाभारत में मिलती है। महाभारत में कहा गया है-जीव के छह वर्ण होते हैं-कृष्ण, धूम्र, नील, रक्त, हारिद्र और शुक्ल। इसके आधार पर सुख-दुःख को मापा जा सकता है। षड्जीववर्णाः परमं प्रमाणं, कृष्णो धूम्रो नीलमथास्यमध्यम् । रक्तं पुनः सह्यतरं सुखं तु, हारिद्रवर्ण सुसुखं च शुक्लम् ।। कहा गया-कृष्ण वर्ण वाले बड़े क्रूर होते हैं। उनमें सुख नहीं होता। धूम्र वर्ण वालों में सुख का अभाव सा रहता है। उन्हें लव मात्र सुख उपलब्ध होता है। नीले रंग वालों में थोड़ा सुख अधिक होता है। लाल वर्ण वालों में सुख की मात्रा और अधिक हो जाती है। शुक्ल वर्ण वाले व्यक्तियों में सुख की प्रबलता होती है। परम शुक्ल वर्ण में अत्यन्त सुख होता है। वर्ण और सुख का यह एक वर्गीकरण है। इसमें छह वर्ण और छह वर्णों के आधार पर होने वाले सुख-दुःख का विवेचन है। महाभारत का यह सिद्धान्त लेश्या के सिद्धान्त से बहुत निकट है। यद्यपि साम्य नहीं है। फिर भी इसे काफी निकट माना जाता है। महाभारत एक संकलन ग्रंथ है। यह किसी एक दर्शन का ग्रंथ नहीं है। हिन्दुस्तान में जितने विचार प्रचलित थे, उन सबका इसमें संग्रहण कर लिया गया, कोई सीमा-रेखा नहीं रही। वस्तुतः महाभारत है लौकिक ग्रंथ। यह किसी धर्म-संप्रदाय-विशेष का ग्रंथ नही है। साहित्य को तीन भागों में वगीकृत किया गया-लौकक साहित्य, वैदिक साहित्य और श्रमण साहित्य। वेद आदि वैदिक साहित्य है। आगम, त्रिपिटक आदि श्रमण साहित्य है। महाभारत, रामायाण आदि लौकिक साहित्य है। आज भी जो लौकिक कथाएं, काव्य और लोकगीत हैं, वे आम जनता के लिए हैं। किसी धर्म-संप्रदाय-विशेष के लिए नहीं हैं। जहां लोकगीत या लोक कहानियों का प्रश्न है, हिन्दु हो या मसलमान. वे सबके लिए समान हैं। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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