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लेश्या सिद्धान्त : ऐतिहासिक अवलोकन
लेश्या का सिद्धान्त पहले दार्शनिक जगत में चर्चित था और आज वह वैज्ञानिक चर्चा का विषय बन चुका है। नाम बदल सकता है पर सिद्धान्त वही है। आज विज्ञान के क्षेत्र में 'ओरा' पर काफी चर्चा हो रही है। दो शब्द हैं-ओरा और हेलो। पूरे शरीर के चारों ओर जो वलय होता है, वह ओरा है, आभामण्डल है। जो सिर के चारों ओर मंडलाकार में होता है, वह हेलो है, भामण्डल है। महापुरुषों के सिर के पीछे जो एक ज्योतिर्मय चक्राकर मण्डल दिखाया जाता है, उसका नाम है भामण्डल। आभामंडल और भामण्डल-ये दोनों बहुत चर्चित हो गए हैं। इनके फोटो भी लिए गए हैं। इटेलियन फोटोग्राफी इस विषय में काफी प्रसिद्ध हो चुकी है। इस क्षेत्र में और भी अनेक लोग काम कर रहे हैं।
अमेरिका की एक महिला है डा. जे. सी. ट्रस्ट । उसने इस क्षेत्र में बहुत काम किया है। डा. जे. सी. ट्रस्ट ने इस विषय पर एक पुस्तक भी लिखी है-एटम एण्ड ओरा। ओरा के अनेक चित्र भी प्रकाशित किए हैं। मद्रास के एक डाक्टर ने ओरा के फोटो लेने की मशीन का निर्माण किया है। वे अंगूठे के आभामण्डल का फोटो लेते हैं और उसके आधार पर रोगों का निदान करते हैं। उन्होंने अनेक रोगों के निदान इस पद्धति से किए हैं और वे काफी सफल रहे
हैं।
लेश्या का सिद्धान्त आज वैज्ञानिक सिद्धान्त बन चुका है। कम से कम ढाई हजार वर्ष की यात्रा इस सिद्धान्त ने की है। यह सिद्धान्त महावीर के समय में था और इसका सबसे बड़ा प्रमाण है आचारांग सूत्र का यह वाक्य-'अबहिल्लेसे'। सबसे प्राचीन आगम माना जाता है आचारांग। उसमें लेश्या शब्द का प्रयोग प्राप्त है। महावीर से लेकर आज तक लेश्या का सिद्धान्त बराबर चल रहा है।
ऐतिहासिक दृष्टि से यह खोजना होता है-अमुक विचार सबसे पहले किसने दिया? भारतीय दर्शन और जैन दर्शन के संदर्भ में इस तथ्य की खोज ऐतिहासिक दृष्टि से बहुत अपेक्षित है। आज जितने विचार और जितने सिद्धान्त मिलते हैं, वे सबसे पहले कहां से आए? इनका मूल स्रोत क्या है? महत्त्वपूर्ण है मूल स्रोत की खोज। उसके बाद संक्रमण होता रहता है। एक अच्छे सिद्धान्त को दूसरा भी अपना लेता है, केवल थोड़ी सी भाषा में बदलाव कर दिया जाता है। विचार और कथानक सबका संक्रमण होता रहता है। हिन्दुस्तान की कहानियां रूस तक पहंच गई। भारत में रक्षिता-रोहिणी की कहानी बहत प्रचलित रही है.
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