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महावीर का पुनर्जन्म
महाभारत भी लौकिक काव्य है । इसमें सब धर्मों और दर्शनों का समाहार है। इसमें जैन दर्शन भी मिल जाएगा, बौद्ध और वैदिक दर्शन भी मिल जाएंगे। उस समय का जितना भारतीय दर्शन और चिन्तन है, उन सबका समाहार महाभारत में उपलब्ध है । जो भी अच्छा लगा, उसे इसमें सम्मिलित कर लिया गया, इसीलिए इसमें बहुत सारी विरोधी बातें मिलती हैं। इसमें जहां एक ओर प्रवृत्ति धर्म पर बल दिया है वहीं दूसरी ओर निवृत्ति धर्म पर भी बहुत बल दिया है। इन दोनों में कोई तालमेल नहीं है। एक सामान्य व्यक्ति पढ़ेगा तो उसे लगेगा - कितनी विरोधी बातें लिखी गई हैं। वस्तुतः विरोधी बातें लिखी नहीं गयी हैं, संकलित की गई हैं ।
प्रश्न यह है- क्या महाभारत बहुत पुराना है? महाभारत बहुत पुराना है, यह मानना बड़ा कठिन है । हो सकता है, यह हजार वर्ष पुराना हो, डेढ़ हजार वर्ष या दो हजार वर्ष पुराना हो किन्तु यह महावीर से पहले का है, यह कहना बहुत मुश्किल है। महावीर से पहले का महाभारत इतना बड़ा बना ही नहीं था । उस समय इसका रूप बहुत छोटा था। प्रारंभ में सम्भवतः इसके सात हजार श्लोक रहे होंगे। फिर इक्कीस हजार बने और आज इसका परिमाण एक लाख से भी अधिक है । यह सारा उत्तरकालीन विकास है ।
विमर्शनीय बातें
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बौद्ध साहित्य में अंगुत्तर निकाय में छह अभिजातियों की चर्चा है । डा. ल्यूमैन और डा. हरमन जेकोबी ने अपने अनुसंधान के आधार पर यह निष्कर्ष निकाला - महावीर ने लेश्या का सिद्धान्त आजीवकों से लिया। कुछ विदेशी विद्वान अनुमान करने में तेज रहे हैं और उन्होंने कुछ विचित्र अनुमान किए हैं। इसका एक कारण यह रहा- उनके सामने पूरी परंपरा नहीं थी । एक दो ग्रंथ पढ़ लिए और उनके आधार पर अनुमान प्रस्तुत कर दिया । यद्यपि उनमें प्रतिभा है, बुद्धि है, उनका कुछ स्टेण्डर्ड है, कुछ तरीके और कसौटियां हैं किन्तु परंपरा के अभाव में उनके निर्णय सही नहीं ठहरते। उनका निष्कर्ष रहा-आजीवक संप्रदाय काफी पुराना रहा है और महावीर ने उनसे काफी बातें ली। एक है नग्नता । महावीर ने नग्नता आजीवक संप्रदाय से ली । कष्ट सहने की परंपरा महावीर ने आजीवक संप्रदाय से ली । ऐसी बहुत सारी बातों के बारे में लिखा गया है। इतिहास की दृष्टि से ये सारी बातें विमर्शनीय हैं। इनमें से कुछ बातों का काफी खंडन हो चुका है। ऐसे ही अनुमान किया गया— लेश्या का सिद्धान्त आजीवकों से लिया गया है ।
छह अभिजातियां
पहली बात यह है— ये जो छह अभिजातियां है, वे आजीवक संप्रदाय की नहीं हैं । उस समय जो छह तीर्थंकर कहलाते थे, उनमें एक तीर्थंकर थे पूरणकश्यप । पूरणकश्यप ने इन छह अभिजातियों का वर्णन किया है। उनके द्वारा प्रस्तुत वर्गीकरण लेश्या के सिद्धान्त जैसा वर्गीकरण नही है । यद्यपि नाम कृष्णाभिजाति, नीलाभिजाति आदि मिलते हैं किन्तु इनका आधार सर्वथा दूसरा है ।
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