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लेश्या : भावधारा
तुम्हारी इच्छा क्या है? तुम्हारी भावना क्या है? तुम क्या सोचते हो? ये तीन प्रयोग हमारी चेतना के तीन स्तरों को अभिव्यक्त करते हैं। हमारी चेतना के कई स्तर हैं। इन स्तरों के आधार पर भाषा के भी अलग-अलग प्रयोग विकसित हुए हैं। 'तुम्हारी इच्छा क्या है' इस वाक्य में कोई चिन्तन नहीं है, मन का भी सवाल नहीं है। यह मन से परे की बात है। इच्छा चेतना का बहुत गहरा स्तर है। मन बहुत ऊपर रह जाता है।
इच्छा से आगे भावना का स्तर है। 'तुम्हारी भावना क्या है' यह भावना होने का स्तर है। इसके नीचे रहती है इच्छा। क्या होना है? जो घटित हो रहा है, अपने आप हो रहा है और जिसे हम कर नहीं रहे हैं, वह भावना है। भीतर में कुछ ऐसा है कि सब कुछ अपने आप चल रहा है। हमारी कोई चेष्टा नहीं
त्न नहीं है किन्तु ऐसी कोई आंतरिक शक्ति या प्रेरणा जागती है, जिससे अपने आप एक क्रम चल रहा है। यह है भावना का स्तर। बाहर से कुछ दिखाई नहीं दे रहा है और भीतर में सब कुछ घटित होता जा रहा है। कबीर का प्रसिद्ध वाक्य है
बाहिर से तो कछू य न दीखे भीतर चल रही जोत।
आग को राख से ढक दिया। बाहर से कुछ नहीं दिख रहा है पर भीतर एक ज्योति जल रही है। इसी प्रकार भाव हमारी चेतना का वह स्तर है जो बाहर से कुछ नहीं दिखता पर भीतर ही भीतर अपना काम कर रहा है। भीतर में एक आग निरन्तर जल रही है। अनेक बार हम कई लोगों से पूछते हैं-तुम यह सब कर रहे हो आखिर इसके पीछे तुम्हारी क्या भावना है? ऐसा प्रश्न अनेक बार पूछा जाता है जो आचरण किया जा रहा है, उसके पीछे भावना क्या है? इसका अर्थ है-करने के नीचे है भावना का स्तर। बंदर का चातुर्य
एक मगरमच्छ ने बंदर से दोस्ती कर ली। आम का मौसम आया। नदी के किनारे आम का एक विशाल पेड़ था। बंदर ने आम तोड़ा और उसे मगरमच्छ के मुंह में डाल दिया। उसे भी आम बड़ा मीठा लगा। मगरमच्छ को आम खाने का चस्का लग गया। एक दिन मगरमच्छ की पत्नी ने पूछा-'आजकल तुम देर से क्यों आते हो? क्या बात है?' मगरमच्छ ने कहा-'नदी के किनारे मेरा एक मित्र रहता है। वह मुझे रोज मीठे-मीठे आम खिलाता है। आम इतने मीठे होते हैं कि मैं उन्हें छोड़ नहीं सकता इसीलिए रोज देर हो जाती है। पत्नी ने कहा-'अकेले ही खाते हो, मुझे नहीं खिलाते।' पत्नी
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