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________________ ४८८ महावीर का पुनर्जन्म होते हैं। हमने जगत सेठ का नाम सुना है। एक समय था-उनके पास आजीविका चलाने का कोई साधन नहीं था। वे एक दिन एक जैन मुनि के पास आए। जैन मुनि ने कहा-'तुम मंगल पाठ सुन लो। यह बहुत श्रेष्ठ समय है।' जैन मुनि ने स्वर के आधार पर यह निर्णय किया था। जगत सेट वहां से सीधा व्यापार के लिए चल पड़ा। उसका भाग्य खुल गया। उसके घर पर धन का अंबार लग गया। दुनिया के श्रेष्ठ व्यापारियों में उसका नाम विश्रुत हो गया। नियमों को जानें जो नियम को जानता है, वह समय का लाभ उठा सकता है, अपने कार्य में सफल हो सकता है। हम स्वयं इस बात को जानते हैं-किस समय कौनसा काम किया और उसका प्रतिकूल परिणाम आया। किस समय कौनसा काम किया और उसका अनुकूल परिणाम सामने आया। इस नियम को समझने वाला हानि नहीं उठाता। हम एक नियम की और मीमांसा करें। प्रश्न होता है-पहले प्रहर में स्वाध्याय और दूसरे प्रहर में ध्यान का नियम क्यों बनाया गया? जैविक घडी के आधार पर इस तथ्य की छानबीन की गई। उसका था-चिन्तन, मनन और बौद्विकता का जो काम है, वह नौ बजे के बाद होना चाहिए। स्मृतिजन्य जो काम है, वह नौ बजे के पहले होना चाहिए। नौ बजे से पहले स्मृति-जन्य कार्य अच्छा होता है, नौ बजे से बाद चिन्तन-जन्य कार्य अच्छा होता है। अगर कोई अनुसंधान करना है तो उसके लिए दो बजे के बाद का समय उत्तम है। दर्शन प्रायोगिक बने काल के आधार पर कर्म का कैसा विपाक होता है, इसे हम स्वरोदय शास्त्र और जैविक घड़ी के संदर्भ में समझ सकते हैं। कर्म विपाक का एक नियम काल से बंधा हुआ है। उसके और भी अनेक-अनेक नियम हैं। उन्हें समझाने के लिए अनेक दृष्टिकोणों से सोचना आवश्यक है। उत्तराध्ययन सूत्र में कर्म के विपाक का बहुत सुन्दर वर्णन प्राप्त है। हम उससे लाभ उठा सकते हैं। सिद्धान्त सिद्धान्त होता है और व्यवहार व्यवहार होता है। हमारे सामने प्रश्न है-सिद्धान्त को व्यवहार में कैसे लाएं? कर्मवाद का अर्थ ही है-एप्लाइड फिलॉसफी-प्रायोगिक दर्शन। इसका सम्यक् मनन करने वाला व्यक्ति अपने जीवन में ऊंचाइयों को छू सकता है, सफल और सार्थक जीवन जी सकता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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