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________________ कर्म : विपाक और स्थिति ४८७ नौ-दस बजे दर्शनावरणीय कर्म के विपाक का समय होता है। यदि उस समय नींद न आए तो वह आश्चर्य की बात हो सकती है। हम काल के आधार पर कर्म-विपाक को समझ सकते हैं। स्वरोदय शास्त्र में ढ़ाई-ढाई घड़ी का समय बांटा गया। सूर्योदय से लेकर प्रत्येक ढ़ाई घड़ी के पश्चात व्यक्ति का स्वर बदल जाता है। यदि सूर्य स्वर और चन्द्र स्वर के आधार पर कर्म विपाक को समझा जाए, जैविक घड़ी-बायोलॉजिकल वाच के आधार पर कर्म के विपाक को समझा जाए तो कर्म-विपाक से बचने का मार्ग प्राप्त हो जाए। स्वरोदय शास्त्र का श्लोक है चंद्रकाले यदा सूर्यः, सूर्यश्चन्द्रोदये भवेत्। __ उद्वेगः कलहो हानिः, शुभं सर्व निवारयेत् ।। जब सूर्यकाल में चन्द्रस्वर चलता है और चन्द्रकाल में सूर्यस्वर चलता है तब उद्वेग, कलह, हानि की संभावना प्रबल बनती है, शुभ कार्य में बाधा प्रस्तुत हो जाती है। चन्द्रकाल में चन्द्रस्वर चले, सूर्यकाल में सूर्यस्वर चले और सुषुम्नाकाल में सुषुम्ना स्वर चले तो व्यवस्था बहुत ठीक चलती है। स्वर विज्ञान में कहा गया-जितने भी सौम्य कर्म हैं, वे चन्द्र स्वर में करने चाहिए। जितने कठिन कार्य हैं, जिनमें अधिक श्रम करना पड़ता है, जिनमें शक्ति की जरूरत होती है, वे कार्य सूर्यस्वर में करने चाहिए। सुषुम्ना प्रवाह के समय योग एवं मुक्ति के फल को देने वाले कर्म करने चाहिए चंद्रनाडीप्रवाहेण सौम्यकार्याणि कारयेत् । सूर्यनाडीप्रवाहेण रौद्रकर्माणि कारयेत्। सुषुम्नायाः प्रवाहेण, भुक्तिमुक्तिफलानि च।। सूर्यस्वर के समय पिंगला नाड़ी या सिम्पेथेटिक नर्वस सिस्टम सक्रिय होता है, जो शक्ति देता है। मानना चाहिए-अंतराय कर्म के क्षयोपशम का समय है सूर्य स्वर और ज्ञानावरण तथा दर्शनावरण के क्षयोपशम का समय है चन्द्रस्वर। इसी आधार पर बताया गया-किस समय मुनि को स्वाध्याय करना चाहिए और किस समय मुनि को स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। किस समय ध्यान करना अच्छा है और किस समय ध्यान करना अच्छा नहीं है। यह निर्देश दिया गया-एक मुनि को साढ़े ग्यारह से साढ़े बारह बजे तक स्वाध्याय नहीं करना चाहिए। रात्रि दो बजे से लेकर चार बजे तक का समय ध्यान के लिए श्रेष्ट होता है। आत्मनिरीक्षण सका समय है पूर्व रात्रि या अपर रात्रि। चिन्तन कब करना चाहिए, धर्म जागरिका कब करना चाहिए आदि-आदि के जितने नियम बनाए गए हैं, उनका मुख्य आधार है काल। किस समय में, किस काल में किस कर्म का विपाक होता है? इस तथ्य के आधार पर अनेक नियमों की संरचना की गई और वे आज भी वैज्ञानिक बने हुए हैं। नियम नहीं जानने वाले व्यक्ति कह देते हैं-अमुक समय यह काम करो, अमुक समय यह काम मत करो। यह सारा अंधविश्वास है। इन नियमों को अंधविश्वास मानने वाले बहुत घाटे में रहते हैं और इन नियमों को जानने वाले बहुत लाभान्वित Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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