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________________ ४८६ महावीर का पुनर्जन्म कर्म विपाक के साथ निमित्तों का भी एक सम्बन्ध रहता है। जो व्यक्ति इन नियमों को समझ लेता है, वह धर्म की अच्छी आराधना कर सकता है, अपने भाग्य की साधना कर सकता है, आने वाली बुराइयों और विपदाओं से भी बच सकता है। कर्म विपाक और क्षेत्र यह धारणा सही नहीं है-कर्म करने के बाद जागरूकता होने से क्या? जो कर्म कर लिया, उसके विपाक को भोगना ही पड़ेगा। कर्मवाद का नियम है-यदि हम कर्म के प्रति जागरूक बन जाएं तो कर्म के विपाक को बदलने का अधिकार हमें उपलब्ध हो जाता है। कर्म के विपाक को भी बदला जा सकता है। उसके बदलने के कुछ नियम हैं। यदि द्रव्य को बदल दिया जाए, क्षेत्र को बदल दिया जाए तो कर्म का विपाक बदल जाएगा। इस सिद्धांत को हम एक सामान्य घटना से समझें। कुछ लोग असम में रहते थे। कालान्तर में वे गुजरात व राजस्थान में रहने लग गए। उनसे पूछा गया- 'असम को छोड़कर इधर क्यों आए?' उन्होंने जवाब दिया-'असम की एरिया में श्वास की बीमारी भयंकर बन जाती है। उस स्थिति में वहां रहा नहीं जा सकता। गुजरात, राजस्थान आदि में श्वास की बीमारी ठीक रहती है। इसलिए हमने असम से अपने व्यापार को समेट लिया, राजस्थान, गुजरात आदि क्षेत्रों में काम कर लिया।' कर्म के विपाक का एक निमित्त है क्षेत्र। एक क्षेत्र में कर्म का विपाक होता है, दूसरे क्षेत्र में कर्म का क्षय हो जाएगा। आचार्य भिक्षु ने भरत चरित में भरत के महलों का बहुत सुन्दर वर्णन किया है। जिस प्रासाद में भरत केवली बने, वह कांच का महल था, आदर्श महल था। उस प्रासाद में केवल भरत ही केवली नहीं बने, सात राजा और कैवल्य को प्राप्त हुए। नौवें राजा ने सोचा-यह कैसा मकान, इसमें जो प्रवेश करता है, रहता है, वह घर को छोड़ साधु बन जाता है। ऐसा होना अच्छा नहीं है। इस महल को तुड़वा देना चाहिए। आठ राजाओं ने उस आदर्श भवन में बिना वेश बदले गृहस्थ के वेश में बैठे बैठे ध्यान किया। वे ध्यान में लीन हुए और शुक्ल ध्यान की अवस्था में पहुंच गए। उन्हें कैवल्य उपलब्ध हो गया। वे सब कुछ उपलब्ध कर आदर्श भवन से बाहर आए। वह कितना सुन्दर क्षेत्र था! नौवें राजा को यह कार्य अच्छा नहीं लगा। उसने उस महल को तुड़वा दिया। एक क्षेत्र के साथ जो उपलब्धि जुड़ी हुई थी, वह समाप्त हो गई। कर्म विपाक और काल काल के साथ भी कर्म विपाक का संबंध है। काल के साथ कर्म विपाक की स्थितियां बदलने लग जाती हैं। जब सर्दी का मौसम होता है तो सर्दी लगने लग जाती है, शीतजन्य बीमारियां हो जाती हैं। जब गर्मी का मौसम होता है, लू लगने लग जाती है। जब वर्षा का मौसम होता है, सर्दी और गर्मी दोनों नहीं होते। उस समय कुछ दूसरे प्रकार के रोग होने की संभावना बढ़ जाती हैं। काल के साथ स्थिति बदल जाती है। प्रातःकाल नौ-दस बजे का समय दर्शनावरणीय कर्म के विपाक का समय नहीं है, वह नींद लेने का समय नहीं है। रात के Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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