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कर्म की प्रकृतिया
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बात, कर्म की प्रकृति में बदलाव की बात, स्वभाव परिवर्तन की बात संभव बन पाएगी। इसके लिए अपने अन्तर की गहराई में जाना जरूरी है। इसमें दूसरों का परामर्श बहुत काम नहीं आएगा।
मां-बाप बहुत तेज लड़ रहे थे। भाई ने अपनी बहिन से पूछा-'मम्मी-पापा क्यों लड़ रहे हैं?' बहिन ने कहा- 'मम्मी कह रही थी—मैंने तुम्हारे साथ शादी करके गलती की और पापा कह रहे थै—मैंने तुम्हारे साथ शादी करके गलती की।' यह सुनकर भाई तत्काल बोल उठा-'हमारी सलाह लिए बिना करेंगे तो ऐसा ही होगा।'
आज परामर्श की कमी नहीं है। कमी है आत्मनिरीक्षण की, आत्मानुभूति की। आत्मानुभूति के स्तर पर कर्म के स्वभाव को समझें, उसे समझकर जीवन को जीएं तो हमारे लिए बहुत कल्याणकारी और प्रशस्त मार्ग प्रस्तुत हो पाएगा।
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