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महावीर का पुनर्जन्म
अपना प्रश्न आता है, व्यक्ति की अन्तरात्मा यह साक्षी नहीं देती कि मुझे भी मरना है। इस स्थिति का कारण है कर्म की विकारक शक्ति।
कर्म की एक शक्ति है प्रतिरोधक शक्ति। प्रतिरोधक शक्ति के कारण व्यक्ति स्खलित हो जाता है। व्यक्ति अनेक मंसूबे बांधता है, अनेक कल्पनाएं संजोता है, अनेक योजनाएं बनाता है किन्तु वे पूरी नहीं हो पातीं। वह सोचता कुछ है और हो जाता है कुछ। बहुत सारे लोगों के मन की बात मन में रह जाती है। रावण भी मन की बात मन में लेकर ही मरा था। दुनिया के जितने भी लोग हैं, उनके मन में यह शिकायत बनी रहती है, कसक बनी रहती है-मेरा अमुक कार्य पूरा नहीं हुआ, अधूरा रह गया। इस दुनिया का नियम है-सारी बातें किसी की पूरी नहीं होती, सारे सपने किसी के सच नहीं होते। इन सबका हेतु है-प्रतिरोधक कर्म का प्रबल होना। दो चेहरे
दुःख का कारण है-कर्म को न समझ पाना। प्रश्न है-एक दिन को आदमी कैसे जीता है? प्रातः सूरज उगता है और सायं सूरज अस्त हो जाता है। रात उतरती है और रात ढल जाती है। अपने परिवार के साथ, अपने मित्रों के साथ, अपने समाज के साथ व्यक्ति दिन को बिताता है, जीवन को भोगता है। वह बाहर सबके साथ भोगता है किन्तु भीतर में अकेला जीता है, अकेला भोगता है। उसका बाहरी रूप भिन्न होता है, भीतरी रूप भिन्न होता है। किसी से बात करता है किन्तु मन में कुछ अन्यथा सोच रहा होता है। वह ऊपर से स्वयं को प्रसन्न दिखाता है किन्तु भीतर से दुःखों का ज्चार फूट रहा होता है। दुनिया में जीने वाले व्यक्ति का बाहरी चेहरा अलग है और भीतरी चेहरा अलग है। उसका बाहरी चेहरा समाज के साथ जुड़ा हुआ है और भीतरी चेहरा कर्मों के साथ जुड़ा हुआ है। बाहरी चेहरा एक मुखौटा बन गया है। उसके भीतर जो है, उसे पहचानना मुश्किल है। कर्मवाद : जीवन का दर्शन
हमारा एक व्यक्तित्व है कर्म का व्यक्तित्व। जो आदमी कर्म की प्रकृति को नहीं जानता, वह अपनी प्रकृति को कैसे जानेगा? मनोविज्ञान ने मानवीय प्रकृति का विश्लेषण किया है। प्रत्येक व्यक्ति कर्म को जानकर अपने स्वभाव का विश्लेषण कर सकता है। जब तक हम कर्म के स्वभाव के बारे में नहीं सोचते तब तक हम अपने स्वाभाव को भी नहीं बदल सकते। हमारा जो स्वाभाव बना है, उसको बनाने वाली सत्ता हमारे भीतर है। उसे जाने बिना, उसकी निर्जरा किए बिना स्वाभाव को बदलने का सूत्र प्राप्त नही होता।
कर्मवाद केवल सिद्धांत नहीं है, जीवन का दर्शन है। उसके आधार पर पूरे जीवन का प्रासाद खड़ा है। हम उसे केवल जानने के लिए न जानें किन्तु
कर्म को अपने व्यवहार से जोड़ने के लिए जानें। इस स्थिति में ही निर्जरा की Jain Education International For Private & Personal Use Only
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