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________________ कर्म की प्रकृतियां विचलित हो जाता है । उसमें अनन्त शक्ति कहां है? एक सामान्य चर्चा में भी व्यक्ति उलझ जाता है । अनन्त ज्ञान का प्रश्न ही कहां है? कर्म की तीन शक्तियां I मनोविज्ञान में तीन वर्ग प्रस्तुत किए गए - सामान्य मनोविज्ञान, असामान्य मनोविज्ञान और विशिष्ट मनोविज्ञान । तीन प्रकार के व्यक्तित्व होते हैं और उनके आधार पर मनोविज्ञान में ये तीन वर्ग बने हुए हैं। कर्मवाद के आधार पर भी कर्म की तीन शक्तियां प्रस्तुत होती हैं-आवारक शक्ति, विकारक शक्ति और प्रतिरोधक शक्ति । आवारक शक्ति बिगाड़ती कुछ नहीं है, केवल पर्दा डालती है जब आंखों पर पर्दा डाल दिया जाता है तब कुछ भी दिखाई नहीं देता। यह भी क्या कम नुकसान है ! आश्चर्य होता है- कितनी शताब्दियों तक महिलाओं ने आंखों पर पर्दे को सहन किया है । आज भी यह पर्दा बड़ी मुश्किल से हटा है किन्तु अभी भी पूरा नहीं हट पाया है । पर्दा हटाने वाले लोगों को भी बहुत सुनना पड़ा है, सहना पड़ा है । यह माना जाता है- शरीर में सबसे ज्यादा प्रभावी, आनन्ददायी और शक्तिशाली हैं-आंखें । आंख है तो जगत है। आंख नहीं है तो कुछ भी नहीं है। हमारी चेतना की आंख पर कर्म ने पर्दा डाल रखा है, ज्ञान और दर्शन आवृत बने हुए हैं । कर्म की विकारक शक्ति मोहनीय कर्म है। बिगाड़ करने वाला, चेतना में विकृति लाने वाला एकमात्र कर्म है मोहनीय कर्म । दूध में जामन दिया, दूध बिगड़ गया, दही बन गया । सघन मूर्च्छा हमारी चेतना को विकृत बनाए हुए है। हम सत्य की बात करते हैं किन्तु सत्य को पाना बहुत कठिन है । मूर्च्छा का घेरा इतना सघन है कि सत्य का पता ही नहीं चलता । व्यक्ति का प्रायः सारा जीवन मूर्च्छा में ही बीतता है। यदि मूर्च्छा न हो तो उसे जीवन कैसा ही लगने लग जाए। वह मूर्च्छा के कारण जीवन की सचाई से अपरिचित बना रहता है । उसे यह अनुभूति ही नहीं होती -मुझे इस दुनिया से एक दिन चले जाना है । एक संभ्रांत परिवार के लोगों से बातचीत चल रही थी। परिवार के मुखिया व्यक्ति ने कहा- 'अमुक व्यक्ति यह काम कर रहा है। अमुक व्यक्ति कनाडा में व्यापार कर रहा है। अमुक भाई के तीन-चार फैक्ट्रियां चल रही हैं।' मैंने कहा – 'भाई ! तुम लोग व्यापार कर रहे हो, अन्धाधुन्ध खर्च कर रहे हो किन्तु आखिर क्या है?' वे इस प्रश्न को सुन स्तब्ध रह गए। अन्त में क्या होगा, इस बारे में व्यक्ति बहुत कम सोचता है । उसकी मूर्च्छा टूटती ही नहीं है । प्रत्येक व्यक्ति जानता है- एक निश्चित अवधि के बाद यह जीवन नहीं रहेगा। आज तक कोई भी व्यक्ति अमर बनकर रहा नहीं है और रहेगा भी नहीं। लोग उपदेश देते हैं- एक दिन सबको मरना है। प्रत्येक व्यक्ति को सांत्वना देने के लिए इस उपदेश पद का प्रयोग होता है किन्तु जहां Jain Education International For Private & Personal Use Only ४७६ www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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