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________________ स्वतन्त्रता की सीमा ३१. है तो वह उसे बाध्य नहीं कर सकता। वह कहेगा-भंते! यदि आपकी इच्छा हो, आप चाहें तो यह काम कर दें। स्वतन्त्रता की बाधाएं आत्मकर्तृत्व की परम्परा में स्वाधीनता-स्वतन्त्रता का पूरा सम्मान किया गया है। ईश्वर-कर्तृत्व की परम्परा में उसका कोई सम्मान नहीं हो सकता। वहां प्रत्येक व्यक्ति एक प्रकार से यंत्र जैसा होता है। जैसी नियुक्ति करो वैसा ही वह चलेगा, वैसा ही वह काम करेगा। उसकी अपनी कोई स्वतंत्र इच्छा नहीं होती। आत्मकर्तृत्व की परम्परा में संकल्प की पूरी स्वतन्त्रता है, पर उसमें भी कुछ बाधाएं हैं। एक बड़ी बाधा है प्रभावित होने की। भयं प्रलोभनं द्वेष, आवेशो हीनभावना। अहंकारो लोकवाद, एतैः स्यादप्रभाविताः ।। भय, प्रलोभन, द्वेष, आवेश, हीनभावना, अहं-भावना और लोकवाद–इनसे अप्रभावित होती है स्वतन्त्रता की सीमा। वास्तव में इनसे अप्रभावित स्वतन्त्रता ही स्वतन्त्रता है, अन्यथा वह परतंत्रता है। भय और प्रलोभन पूरे धर्मिक जगत् का सिंहावलोकन करें तो पता चलेगा-धर्म के साथ जो नहीं आना चाहिए था, वह आ गया। धर्म के निर्मल प्रवाह में जो कलुष नहीं धुलना चाहिए था, वह घुल गया। जमाना ही कुछ ऐसा है-गंगा की पवित्र धारा में यह फैक्ट्रियों का कचरा नहीं मिलना चाहिए था, पर वह मिलता चला जा रहा है। आज गंगा का निर्मल पानी भी स्वच्छ नहीं रहा। धर्म के जगत् में भी शायद कुछ ऐसा ही हुआ है। आदमी धर्म कर रहा है किन्तु उसके पीछे भय की भावना काम कर रही है। सबसे बड़ा भय नरक का है। स्वतंत्रता में यह भय भी नहीं होना चाहिए। जहां शुद्ध उपयोग है, आत्मा की पवित्रता है वहां किसी प्रकार का भय नहीं होता। उसमें प्रलोभन भी नहीं होना चाहिए। आज धर्म के साथ प्रलोभन भी जुड़ गया है। धन के लिए, बेटों के लिए, सुखी परिवार के लिए मुख्यतः धर्म की आराधना की जाती है। इसका कारण है-व्यक्ति की स्वतन्त्रता भय और प्रलोभन से प्रभावित है। अप्रभावित चेतना के बिना स्वतंत्रता का मूल्य नहीं आंका जा सकता। छंद का निरोध करो, इसका अर्थ यह नहीं है कि स्वतंत्रता को काम में न लिया जाए किन्तु इसका अर्थ है-जो भय और प्रलोभन से प्रभावित छंद है उसका निरोध किया जाए। व्यक्ति आवेश से अविष्ट है। जब उत्तेजना आती है, आदमी अपना आपा खो देता है। क्रोध जागता है तो व्यक्ति की सारी चेतना लुप्त हो जाती है। व्यक्ति की स्वतंत्रता आवेश से प्रभावित होती है। व्यक्ति की स्वतंत्रता कभी हीनभावना से प्रभावित होती है और कभी अहंभाव से। कोई बड़ा आदमी आया, किसी को बड़ा सम्मान मिला, व्यक्ति में अपने आप हीनभावना जाग जाती है। व्यक्ति को अगर कभी कुछ मिल जाता है, सफलता मिल जाती है, शाबासी या साधुवाद मिल जाता है, उसका अहंभाव जाग जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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