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कर्मवाद
मनुष्य के मन में एक प्रश्न उठा - सब मनुष्य समान क्यों नहीं हैं? सारे मनुष्य मनुष्य हैं, वे एक जैसे क्यों नहीं हैं? उनकी आकृति में भेद है, प्रकृति में भेद है, विचार में भेद है। भाई भाई भी समान नहीं होते। उनकी आकृति में अन्तर है, प्रकृति में अन्तर है, विचार और भावनाओं में अन्तर है । यह भेद कौन कर रहा है? कौन ऐसा विधाता है, जो भाग्य की लिपि लिख रहा है और सबको अलग-अलग सांचे में ढाल रहा है। क्या कोई एक ऐसा सांचा नहीं है, जिसमें सब समान रूप से ढल जाएं। क्या ऐसा सांचा किसी ने नहीं बनाया? क्यों नहीं बनाया? जब इसका कारण खोजा गया, तब भेद की बात समझ में आई ।
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कारण की खोज के लिए स्थूल से सूक्ष्म जगत में जाना होता है। जो व्यक्ति स्थूल से सूक्ष्म में गया है, वह कारण की खोज में सफल हुआ है । जव व्यक्ति स्थूल से सूक्ष्म जगत में जाता है, तब अनेक रहस्य उद्घाटित होते हैं, नए-नए तथ्य प्रस्तुत होते हैं । स्थूल जगत में जो बात समझ में आती है, वह बहुत अस्पष्ट और अपर्याप्त होती है। कारण की खोज के लिए सूक्ष्म जगत में प्रवेश पाना होता है । स्थूल जगत में कार्य हमारे सामने आता है किन्तु कारण छिपा रहता है। वृक्ष सामने आ जाता है, बीज छिपा रहता है । वृक्ष आकाश में खड़ा होता है और मूल भूमि के अन्दर । मूल कारण की खोज के लिए गहराई में जाना होता है, भूमि को खोदकर उसके भीतर तक पहुंचना होता है । केवल वर्तमान के आधार पर, केवल दृश्य जगत के आधार पर जीवन को नहीं समझा जा सकता। उसे समझने के लिए अतीत में जाना होता है। वहां तक पहुंचने वाला व्यक्ति ही सचाई को उपलब्ध हो सकता है ।
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भेद का एक कारण : वंशानुक्रम
हम भेद के कारणों पर विमर्श करें। आज के वैज्ञानिकों ने भेद का एक कारण खोजा - हेरीडीटी - वंशानुक्रम । प्राचीन समय में भी यह बात खोज ली गई थी। आयुर्वेद में पैतृक गुणों की बात उपलब्ध होती है। माता-पिता के गुण संतान में संक्रांत होते हैं । भगवती और स्थानांग सूत्र में मिलता है-संतान को तीन तत्त्व पिता से मिलते है और तीन तत्त्व माता से मिलते हैं। अस्थि-मज्जा, केश - रोम, नख श्मश्रु- ये अंग पिता से मिलते हैं। तीन तत्त्व माता से मिलते हैं- मांस, शोणित और मातुलिंग – भेजा। माता और पिता के गुण या अंग पुत्र में संक्रांत होते हैं, इसका नाम है वंशानुक्रम । वंशानुक्रम का उल्लेख आयुर्वेद और
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