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________________ महावीर का पुनर्जन्म किसका साथ दें। तलवार का साथ दें या आत्मा का साथ दें । तलवार की ताकत से लड़ें या आत्मा की ताकत से ? इस संदर्भ में यह पत्र कितना महत्त्वपूर्ण है - 'आत्मा ही वह ताकत है, जो तलवार की ताकत को परास्त कर सकती है ।' महावीर का यह कथन कितना मार्मिक है- 'एक आदमी युद्ध में हजारों-हजारों योद्धाओं को जीत लेता है। एक आदमी अपनी आत्मा को जीतता है। अपनी आत्म-विजय हजारों योद्धाओं को जीतने से महान है । वह परम जय है ।' अनुभव का स्वर हम इस सचाई को समझें-आत्मा को समझे बिना, आत्मा की अनुभूति किए बिना, यह प्यास कभी नहीं बुझती । यह अमिट प्यास है, जो कभी मिटती नहीं है दुनिया भर का पानी पी लें, प्यास बुझेगी नहीं। यदि हम कुछ मुड़ें, आत्मा की लवलेश मात्र भी अनुभूति कर लें तो प्यास बुझनी शुरू हो जाएगी । इसी अनुभूति के स्वर में भगवान महावीर ने कहा एवं ससंकप्पविकप्पणासो, संजायई समयमुवट्ठियस्स | अत्थे असंप्पयतो तओ से, पहीयए कामगुणेसु तण्हा || अपने राग-द्वेषात्मक संकल्प ही सब दोषों के मूल हैं- जो इस प्रकार के चिन्तन में उद्यत होता है तथा इन्द्रिय विषय दोषों का मूल नहीं है, इस प्रकार का चिन्तन करता है, उसके मन में समता उत्पन्न होती है। उससे उसकी कामगुणों में होने वाली तृष्णा प्रक्षीण हो जाती है । मनुष्य को तृष्णा की प्यास लगी हुई है। वह संकल्प-विकल्प में नहीं बुझेगी। यह बुझेगी समता से । समता को साधो, सम रहना सीखे, विषमता में मत जाओ, ऊबड़-खाबड़ में मत चलो। सामायिक का अभ्यास करो, संकल्प और विकल्प का नाश होगा। संकल्प शब्द के कई अर्थ होते हैं। अच्छी कल्पना करना भी संकल्प है। एक शक्तिशाली विचार करना भी संकल्प है। 'ममेदं इति' – 'यह मेरा है' यह ममत्व का विचार भी संकल्प है। आचार्य कुन्दकुन्द ने संकल्प को आत्मा का लक्षण बतलाया है। पाश्चात्य दार्शनिकों ने संकल्प की स्वतंत्रता का बहुत विवेचन किया है। संकल्प का नाश करना है पर उस संकल्प का नाश करना है, जो बंधन में डाल रहा है, बांध रहा है, आजादी को छीन रहा है । संकल्प के साथ विकल्प बढेगा तो फिर वह अच्छा नहीं रहेगा। उसके साथ बुरे विचार आने भी शुरू हो जाएंगे। एक पौराणिक कहानी है । नारदजी कहीं जा रहे बोला- 'नारदजी महाराज! आप कहां जा रहे हैं?' 'आज मैं स्वर्ग में जा रहा हूं ।' 'नारदजी महाराज! मेरा भी मन होता है स्वर्ग देखने का ।' 'आओ, चलो तुम्हें भी ले चलूंगा।' भक्त नारदजी के साथ चल पड़ा। दोनों स्वर्ग में पहुंच गए। नारदजी ने भक्त को एक छायादार वृक्ष के नीचे बैठने का निर्देश देते हुए कहा - 'मैं कुछ जरूरी काम से जा रहा हूं। तुम इस वृक्ष के नीचे विश्राम कर लो।' यह कहकर नारदजी चले गए। भक्त वहां बैठ गया । आदमी का स्वभाव है संकल्प-विकल्प For Private & Personal Use Only ४६६ Jain Education International थे I भक्त www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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