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यह प्यास पानी से नहीं बुझती
यह प्रश्न बहुत चर्चित रहा है-लोक में सार क्या है? जिसकी निष्पत्ति अच्छी हो, वह सार है। जिसकी निष्पत्ति कुछ न आए, वह असार है। बीज बोए, अंकुरित हुए। फसल पकने का समय आया। यदि मक्का, बाजरा कुछ भी नहीं मिला, तो फसल निस्सार हो गई। यदि अनाज उपलब्ध हुआ तो सार मिल गया।
रोटी खाएं, भूख बुझ जाए तो वह सार है और भूख शान्त न हो तो वह निस्सार है।
___ वस्तुतः वह सार है जो अंत तक बराबर शक्तिशाली बना रहे, कभी कमजोर न पड़े, अपना काम करता रहे और मनुष्य को लाभ पहुंचाता रहे। ऐसा सार क्या है? संस्कृत साहित्य में एक समस्या दी गई-इस असार संसार में सार क्या है? इस समस्या के संदर्भ में अनेक विकल्प प्रस्तुत किए गए। एक अनुभूत आर्ष वाणी में इस प्रश्न के संदर्भ में कहा गया-सच्चं लोयम्मि सारभूयं-सत्य ही लोक में सारभूत है। प्रश्न हो सकता है-सत्य सार क्यों है? सत्य वह होता है, जो त्रैकालिक होता है, कभी मिटता नहीं है। जो मिट जाए, वह सार नहीं है। सत्य वह होता है, जो देश-काल से अबाधित होता है। जो देश-काल से विभाजित होता है, वह सार नहीं रहता। उसका सारा निकल जाता है।
गोशालक भगवान महावीर के समवशरण में आया। उसने तेजोलब्धि का प्रयोग किया और दो मुनियों को भस्म कर दिया। गोशालक का सार निकल गया। पहले महावीर ने कहा-'उससे कोई बात मत करना,' पर सार निकलने के बाद महावीर ने कहा-'अब खूब बातचीत करो, चर्चा करो। गोशालक की शक्ति श्लथ
ई है।' जिसका सार निकल जाता है वह वास्तव में असार हो जाता है। सार वह होता है, जो सदा बना रहता है, कभी न्यून नहीं होता, समाप्त नहीं होता। दुनिया में सत्य ही एक ऐसा तत्त्व है, जो शाश्वत है, सदा एकरूप बना रहता है, कभी बाधित नहीं होता और निरन्तर अपने सार को प्रकट करता चला जाता है। अमिट प्यास
सत्य का मतलब है नियम। सत्य की खोज का अर्थ है नियमों की खोज। जो सार्वभौम नियम है, नियति है, उसका नाम है सत्य। दुनिया में जितने प्राकृतिक नियम हैं, सार्वभौम और जागतिक नियम हैं, जो सब जगह लागू होते हैं उन नियमों को खोजना सत्य को खोजना है। धर्म के आचार्यों ने एक नियम का पता लगाया-एक ऐसी प्यास है, जो पानी पीने से नहीं बुझती। व्यक्ति को प्यास लगी। पानी पीया और प्यास बुझ गई। जिसने प्यास को बुझाने के लिए
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