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________________ त्याग है दुःख से बचने के लिए जीने की कला क्या है? यह प्रश्न अनेक बार उभरता है। हमने उदयपुर में देवीलालजी सांभर द्वारा संस्थापित 'लोक कलामण्डल' को देखा। एक कलाकार सिर पर दस-बारह घड़े रखकर नृत्य करता । वे घड़े मकान की छत छूते प्रतीत होते थे। वह कभी स्टेज पर नाचता और कभी नृत्य करता हुआ धरती पर उतर जाता। वे घड़े उसके सिर पर लंबी कतार जैसे बने रहते। एक भी घड़ा इधर से उधर नहीं होता। उस नृत्य को देख लोग मंत्रमुग्ध हो जाते। क्या हम इसे जीने की कला मानें? ७५ आचार्य श्री तुलसी का संवत् १६६३ में बीकानेर चातुर्मास था । महाराज गंगासिंह जी की गोल्डन जुबली मनाई जा रही थी । उस समय एक कलाकार ने अद्भुत नृत्य किया। पट्ट के बराबर सरसों का एक ढेर कर दिया। कलाकार पट्ट पर नाचते-नाचते सरसों के ढेर पर नाचने लगा। सरसों वैसी की वैसी बनी रहीं कितनी अद्भुत है यह कला ! क्या यह है जीने की कला ? कोशा भारत की प्रसिद्ध नृत्यांगना थी । एक दिन कुशल धनुर्धर सुकेतु आया । वह कोशा को अपनी प्रेयसी बनाना चाहता था । सुकेतु ने कहा – 'देवी ! आप मेरी कला देखें !' कोशा ने कहा - 'कैसी है आपकी कला?' सुकेतु ने धनुष हाथ में लिए और आम की शाखा को लक्ष्य कर बाण छोड़ा। उस बाण की सीध में जीतने पत्ते और आम थे, वे सीधे धरती पर आ गिरे। सुकेतु ने कोशा की ओर देखते हुए कहा - 'देवी! कुशल कलाकार वह होता है, जो एक बाण चलाता है और नीचे से ऊपर तक पूरे लक्ष्य को भेद देता है ।' कोशा ने कहा - 'यह कैसी कला है? मैं आपको दूसरी कला दिखाती हूं उसने दासी को रंगमंच सजाने का निर्देश दिया । कोशा रंगमंच पर पहुंची । सुकेतु भी वहीं था। सामने मंच पर सरसों का ढेर और उसके बीच में सीधे मुंह खड़ी थी लोहे की सुइयां । कोशा सधे कदमों से नृत्य करते हुए उस सरसों के ढेर पर नाचने लगी। सरसों के ढेर में कोई कंपन नहीं । कितना सधा हुआ दृश्य । थोड़ा-सा भी चूक जाए तो लोहे की सूई पैर को बींध डाले । धनुर्धर उसकी कला-साधना देखकर अवाक रह गया। उसने उल्लास भरे स्वर में कहा - 'देवी ! धन्य है आपकी कला - साधना को ! मेरी कला उसके सामने कुछ नहीं है ।' 'सुकेतु! एक बाण से आम के गुच्छे को तोड़ लेना या सरसों पर नाच लेना कोई बड़ी कला नहीं है ।' 'आप किसे कला मानती हैं?" Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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