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क्या कुंजी पास में है?
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मूल्यवान है मानव जीवन
___ हम आत्मनिरीक्षण और आत्मालोचन करें-ये चाबियां हमारे पास हैं या नहीं? सफल एवं स्वस्थ जीवन जीने के लिए हम अपनी मस्तिष्कीय शक्तियों को बढ़ाना चाहते हैं या नहीं? हम अपनी ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति को बढ़ाना चाहते हैं या नहीं? हम अपने भावों और अभिवृत्तियों को विधायक बनाना चाहते हैं या नहीं? प्रत्येक व्यक्ति इन सब तत्त्वों का विकास चाहता है। वह चाहता है-राग-विजय की साधना चले, सफलता के शिखर छुएं, ज्ञानशक्ति और कर्मशक्ति विकसित हो। मस्तिष्कीय क्षमता जागृत हो। भाव पवित्र रहे-शिवसंकल्पमस्तु मे मनः-मन शिव संकल्प बने। यह चाह तब पूरी होती हैं जब शक्ति-विकास की चाबियां मिल जाए। यदि चाबी नहीं मिली, उसे नहीं घुमाया गया, ताला नहीं खोला तो मान लेना चाहिए-हमने अपने जीवन का अर्थ नहीं समझा, मानवीय जीवन का मूल्य नहीं आंका।
कितना मूल्यवान है मानव जीवन! जो इसका मूल्यांकन नहीं करता, वह ऐसे ही रह जाता है। जो शक्तियां जागृत हैं, उनका उपयोग करना है। जो जागृत नहीं हैं, उन्हें जगाने का प्रयत्न करना है। हम संतोष न मानें। अपनी शक्ति के जागरण के लिए और दूसरों के प्रति सौहार्दभाव प्रकट करने के लिए सदा प्रयत्नशील रहें।
एक महिला को अंधे-बहरे बच्चों को सहयोग देने का शौक था। एक दिन नगर में सर्कस चल रहा था। वह बच्चों को सर्कस दिखाने के लिए ले गई। सर्कस पूरा हो गया। महिला ने पूछा-'बच्चो! तम्हें सर्कस देखने में आनन्द आया?' एक अंधा लड़का बोला-'माताजी! मुझे बहुत आनन्द आया पर इस बात का दुःख है कि मेरे बहरे भाई न हाथी की चिंघाड़ सुन सके, न शेरों की दहाड़ सुन सके और न बैंड-बाजों के गीत सुन सके।'
मैं नहीं देख सका, इसका दुःख नहीं है किन्तु ये नहीं सन सके, इसका दुःख है-यह स्वर तभी फूटता है, जब प्रमोदभाव का विकास होता है। दूसरों के विकास की ओर ध्यान देना, दूसरों की कठिनाइयों को महससू करना, यह वृत्ति तब जागती है जब आदमी स्वार्थी नहीं रहता। उसके साथ उसका अपना विकास भी होता चला जाता है। व्यक्ति के मन में एक भावना रहती है-जो मिला है, वह दूसरों को बांटे। दूसरों को भी दे, दूसरों को भी जगाए, महान और विकासशील बनाए। कोई छोटा न रहे, बौना और ठिगना न रहे। सब पूरी ऊंचाई और लंबाई को छुएं। यह उदात्तवृत्ति है। यह वृत्ति सबमें जागे, हम चाबियां खोजें, उन्हें घुमाएं, ताला खोलें, दरवाजा खोलें और भीतर वहां पहुंच जाएं जहां पहुंचने के बाद कोई कामना शेष नहीं रहती। यही राग-विजय का सूत्र है। यही विकास और सफलता की कुंजी है।
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