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________________ क्या कुंजी पास में है? ४५३ क्या वह मन दे पाएगा? यदि उसे कहा जाए-लाख रुपये दे दो तो वह दे देगा पर अपना मन नहीं दे पाएगा। बहुत कठिन है मन को देना महान संत रैक्य जनक के पास आए। राजा जनक उनकी साधना से बहुत प्रभावित हुए। राजा जनक ने प्रार्थना की-'महाराज! आपने जो ज्ञान दिया है, जो साधना बताई है, उससे मैं प्रभावित हुआ हूं। मैं उसके बदले में पूरा राज्य आपको समर्पित करना चाहता हूं।' संत रैक्य ने कहा-'जनक! मुझे राज्य से क्या मतलब है? मैं राज्य चलाना भी नहीं जानता। मुझे राज्य चाहिए भी नहीं। राज्य उस व्यक्ति को चाहिए जो राजसिक प्रकृति का है। मैंने रजोगुण और तमोगुण-दोनों पर विजय पा ली है। मैं सतोगुण विशेष साधना में लगा हुआ हूं। मुझे राज्य की कोई आकांक्षा नहीं है।' जनक ने निवेदन किया-'महाराज! मैं दक्षिणा में कुछ देना चाहता हूं।' रैक्य बोले-'जनक! यदि तुम कुछ देना ही चाहते हो तो राज्य देने का जो संकल्प है, वह मुझे दे दो।' बहुत कठिन है मन को देना। पदार्थ को दिया जा सकता है पर मन को देना बड़ा मुश्किल है। आदमी मन को नहीं दे सकता। जब भूदान और अणुव्रत-दोनों के कार्यक्रम साथ-साथ चल रहे थे तब यह प्रश्न बहुत बार सामने आता-भूदान में इतनी भूमि प्राप्त हो रही है। स्थान-स्थान पर लोग जमीन का दान कर रहे हैं। अणुव्रत क्या दे रहा है? इस प्रश्न के संदर्भ में कहा गया-जो व्यक्ति सौ दो सौ एकड़ जमीन दान दे रहा है, उससे कहा जाए-तुम अपनी बुराइयों को छोड़ दो, भ्रष्टाचार को छोड़ दो, नशा मत करो। क्या वह कर पाएगा? उसका उत्तर होगा—यह नहीं हो सकता। सौ एकड़ जमीन लेना है तो ले लो। लाख रुपए चाहिए तो ले लो पर मैं मेरी आदतें नहीं छोड़ सकता। बहुत कठिन है अपनी आदतों को त्यागना, अपने मन के संकल्प को देना। जो व्यक्ति अपने मन में संकल्प को देना सीख जाए, वह सब कुछ सीख सकता है। आकाश-दर्शन __ प्रेक्षाध्यान शिविर में एक प्रयोग कराया जाता है आकाश-दर्शन या छत-दर्शन का। भूमि को सब देखते हैं, नीचे सब देखते हैं। आप आकाश या छत को देखें, चाबी हाथ लग जाएगी। आपको लगेगा-मन चंचल कहां है? हम नीचे-नीचे देखेंगे तो मन भी नीचे-नीचे चलेगा। हम ऊपर देखना शुरु करें तो मन भी ऊपर चला जाएगा। जितना मन नीचे जाता है उतना ही चंचल बनता है। जितना ऊपर जाता है उतना ही शांत बनता है। जब-जब आदमी स्वार्थ में जीता है, नीचे चला जाता है उतना ही शांत बनता है। जब-जब आदमी परमार्थ में जीता है, ऊंचाई को छूने लग जाता है। गर्दन को थोड़ा ऊपर करके आकाश दर्शन करना, यदि दिन हो तो छत-दर्शन और रात हो तो नीले अंबर का दर्शन। मन की चंचलता पर एक अकुंश और लगाम लग जाएगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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