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महावीर का पुनर्जन्म
मस्तिष्क के विकास का सूत्र
हमारे पास विकास करने की शक्ति है, शक्यता है। सबसे पहली बात है-हमारे पास मस्तिष्क है। दुनिया में इस मस्तिष्क से बड़ी कोई शक्ति नहीं है। दुनिया की सारी शक्तिया, सारे चमत्कार और जादू इस मस्तिष्क में हैं। न जाने कितने चमत्कारी करिश्में इस दो-तीन पौण्ड के मस्तिष्क में समाए हुए हैं। हम विश्व के इतिहास को देखें। ऐसे लोग, जिनके मस्तिष्क को बिल्कुल निकम्मा माना गया, महान व्यक्तित्व प्रमाणित हुए हैं। अध्यापक ने आईन्सटीन से कहा-'तुम कभी पहाड़े नहीं सीख सकते। तुम्हें गणित का ज्ञान कभी हो ही नहीं सकता।' वही आईन्सटीन दुनिया का सबसे बड़ा गणितज्ञ बन गया। कितने लोगों के लिए कहा गया—'तुम निकम्मे हो, कुछ नहीं कर सकते।' वे ही लोग दुनिया के महान आदमी बन गए। अध्यापक ने महात्मा गांधी से कहा-'तुम निरे बुद्धू हो। तुम कुछ जान ही नहीं सकते।' वही गांधी दुनिया का विशिष्ट व्यक्ति बन गया।
प्रश्न है-वह कैसे बना? इसका उत्तर यही है-मस्तिष्क के विकास का सूत्र उपलब्ध हो गया। मस्तिष्क को प्रशिक्षित किया जा सकता है, उसकी शक्तियों को जागृत किया जा सकता है और वह सब किया जा सकता है, जो असंभव जैसा लगता है। वह सब तब संभव बनता है जब चाबी हाथ लग जाए, कोई चाबी देने वाला मिल जाए। हम जीवन के संदर्भ में देखें। आयुष्य को लंबाया जा सकता है। हिन्दुस्तान का औसत आयुमान कुछ वर्ष पहले तक कम था। आज उसमें वृद्धि हो गई है। विदेशों में आयुमान अधिक बढ़ गया है। आज के आदमी की औसत आयु बढ़ी है। पहले का आदमी बहुत जल्दी बूढ़ा हो जाता। पचास वर्ष का आदमी बहुत बूढ़ा लगने लग जाता। आज साठ-सत्तर वर्ष का आदमी भी बूढ़ा नहीं लगता। आयु का मान बढ़ा है और इसलिए बढ़ा है कि उसे बढ़ाया जा सकता है। दीर्घ जीवन कैसे हो सकता है, इसकी चाबियां हाथ लग गई। मस्तिष्क की शक्ति के विकास की चाबियां हाथ लग गईं। शरीर के तापमान को भी नियंत्रित रखा जा सकता है। गर्मी का मौसम हो, लू चल रही हो, व्यक्ति कितनी गर्मी सह पाएगा? वह गर्मी पर भी नियंत्रण कर सकता है यदि चाबी हाथ लग जाए।
प्रेक्षाध्यान का शिविर चल रहा था। भयंकर गर्मी का मौसम। ध्यान का समय हुआ। शिविरार्थियों के लिए उस गर्मी में एक घण्टा ध्यान में बैठना भी समस्या बन गया। एक चाबी का प्रयोग किया, बाएं स्वर से श्वास लेने का ध्यान कराया गया। गर्मी का प्रकोप सता नहीं पाया।
प्रत्येक समस्या का समाधान है, गुर और रहस्य है। हम जान पाएं तो हमारे पास सब कुछ है और न जान पाएं तो हमारे लिए कुछ नहीं है।
हम जानने का प्रयत्न करें। पहली बात है जानना, मन को एकाग्र करना। मन को चंचल बनाता है राग, प्रियता का संवेदन। जब राग कम होता है, मन एकाग्र हो जाता है। राग को कैसे जीता जाए, मन की चंचलता कैसे मिटे? एक आदमी से कहा जाए-तुम अपना मन पांच मिनट के लिए दे दो।
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