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________________ स्वतन्त्रता की सीमा आचार्य विराज रहे थे। विनम्र मुद्रा में वन्दना कर शिष्य बोला - गुरुदेव ! मेरे मन में मोक्ष की उत्कट अभिलाषा है। मैं बन्धन से मुक्त होना चाहता हूं । आप अनुग्रह कर बताएं- मोक्ष का मार्ग क्या है? आचार्य ने बहुत संक्षिप्त सा उत्तर दिया- छन्द का निरोध करो, स्वच्छंदता का निरोध करो, बन्धन- मुक्ति हो जाएगी। ५ शिष्य विस्मय में पड़ गया। उसने मन ही मन सोचा - मेरे पास और बचा ही क्या है? घर बार छोड़ा, परिवार छोड़ा, धन-धान्य छोड़ा, मित्रों को छोड़ा, सगे-सम्बन्धियों को छोड़ा, सबको छोड़ दिया। केवल एक छन्द ही तो बचा है, जो अपना है। गुरु कहते हैं, उसका भी निरोध करो। वह बोला- गुरुदेव ! बात समझ में नहीं आई। छन्द को छोड़ दूं तो फिर बचेगा क्या? गुरु ने कहा- इसको छोड़ दोगे तो फिर जो है, वही बचेगा। बाकी सारा का सारा चला जाएगा। बन्धन आरोपित है। मोक्ष स्वाभाविक है । छंद के निरोध से केवल स्वभाव शेष रहेगा। जो आरोपित है, वह चला जाएगा। शिष्य बोला- आचार्यवर! मैं पूरी बात को समझ नहीं सका। आप इसे और स्पष्ट कराएं। आचार्य ने कहा-आठ आत्माएं हैं। द्रव्य आत्मा, कषाय आत्मा, योग आत्मा, उपयोग आत्मा, ज्ञान आत्मा, दर्शन आत्मा, चारित्र आत्मा और वीर्य आत्मा । इनमें जो कषाय आत्मा है, उसका निरोध करो और ज्ञान आत्मा को जागृत करो, तुम्हारी मुक्ति हो जाएगी। स्वतन्त्रता की यह सीमा स्वयं निर्धारित होती है ज्ञानात्मा नाम संबुद्धः, कषायात्मा नियंत्रितः । स्वतन्त्रतायाः सीमैषा, स्वयं निर्धारिता भवेत् ।। छन्द की अपनी सीमा होती है। छंद एक श्लोक का होता है और एक अपना होता है। छंद का अर्थ है संकल्प । छंद का अर्थ है स्वतन्त्र विचार या स्वतन्त्र प्रवृत्ति । यह स्वतन्त्रता का प्रश्न प्रत्येक व्यक्ति के लिए सुरक्षित है । कोई भी व्यक्ति परतन्त्र बनना नहीं चाहता इसलिए स्वतन्त्रता के अर्थ को समझना अपेक्षित है । छन्द से एक शब्द बनता है स्वच्छंदता । स्वछन्दता स्वतन्त्रता नहीं है । वास्तव में छंद निरोध का नाम है स्वतन्त्रता । यह आचार का पहलू है, साथ-साथ दर्शन का पहलू भी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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