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________________ महावीर का पुनर्जन्म भानजा बोला- 'मामा! फंसना मत। यह बहुत खोटी सीख दे रहा I एक बार फंस गए तो बहुत मार पड़ेगी, मरना पड़ेगा। कहीं ऐसा न हो जाए, लेने के देने न पड़ जाए।' ४४४ मामा बोला- 'इसने बहुत अच्छी सलाह दी है। आराम का जीवन जिएंगे, कोई कठिनाई नहीं होगी।' गधा सीख देकर चलता बना। गाड़ीवान ने रसोई बनाई। खाना खाया । गाड़ी को जोता । बैल चलने लगे। वे मुश्किल से दस-बीस कदम चले होंगे। मामा बैल ने पैर नीचे टिका दिए, जीभ निकाल दी। गाड़ीवान ने चाबुक मारी। बैल उठा, कुछ दूर चला और फिर नीचे गिर गया। गाड़ीवान ने देखा - बैल बहुत गम्भीर स्थिति में है । यदि यह मर गया तो शरीर (मिट्टी) भी काम नहीं आएगा। उसने तलवार निकाली और बैल का काम तमाम कर दिया । वह सदा के लिए आराम की नींद में सो गया। गाड़ीवान ने सोचा- समस्या हो गई, एक बैल से गाड़ी कैसे चले ? उसने जंगल में इधर-उधर देखा । वह ताजा-मोटा बुटकना गधा दिखाई दिया। गाड़ीवान ने उसे पकड़ कर गाड़ी में जोत दियां, वह गधा सरपट दौड़ने लगा । भानजा बैल यह देख बोल उठा विद्धकर्ण! दुराचारिन् ! मातुलो मम घातितः । चलसि वायुवेगेन, कौटिल्यं न करोसि किम् ।। हे दुराचारी गधे ! तुमने मेरे मामा को मरवा दिया और अब वायुवेग से दौड़ रहे हो ! अब तुम कुटिलता क्यों नहीं करते हो? गधा बोला कौटिल्यं तत्र कर्तव्यं, यत्र धर्मः प्रवर्तते । सार्थवाहो महादुष्टः कंठच्छेदं करोति मे ।। कुटिलता वहां करनी चाहिए जहां धर्म का प्रवर्तन हो । यह गाड़ीवान महा दृष्ट है । यदि यहां कुटिलता करूंगा तो तुम्हारे मामा जैसी गति मेरी होगी । बालजनों का वर्जन बहुत आवश्यक है । गुरुसेवा, वृद्धसेवा, बालसंग का वर्जन- ये तीनों व्यावहारिक भी हैं, वास्तविक भी हैं । 1 स्वाध्याय : एकांतवास दुःख - मुक्ति का चौथा उपाय है- स्वाध्याय । जब तक इन तीनों में गति नहीं होती तब तक स्वाध्याय भी बहुत काम का नहीं होता । स्वाध्याय के लिए अच्छा वातावरण बनना चाहिए, पृष्ठभूमि बननी चाहिए, उपयुक्त वातावरण बनना चाहिए। उसमें ये तीनों तत्त्व बहुत सहायक होते हैं । दुःख - मुक्ति का पांचवां उपाय है- एकांतवास । एकांतवास का मतलब जंगल में जाकर रहना नहीं है। व्यक्ति निरन्तर कोलाहल में रहता है, विचार, चिन्तन और भावों की भीड़ में रहता है। उनसे बचना भी एकांतवास है । एकांतवास में रहना बहुत आवश्यक है । यदि प्रतिदिन एक या दो घंटा बिलकुल एकांत में बिताया जाए तो जंगल में जाने की जरूरत ही न रहे। एक व्यक्ति ध्यान में बैठ गया, निर्विकल्प समाधि की अवस्था में चला गया, विचार की दुनिया से अलग हो गया, वह एकांतवास है। ऐसे एकांत में रहना बहुत जरूरी है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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