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यह रास्ता है दुःख के अलविदा का
४४५ प्रज्ञा को जगाने के लिए, अन्तर्दृष्टि को जगाने के लिए, एकांत में रहना आवश्यक है। निरन्तर चिन्तन और निरन्तर प्रवृत्ति अनेकांत है, एकांत नहीं है। एकांत है निवृत्ति। जब हमारे जीवन में प्रवृत्ति और निवृत्ति का सन्तुलन होता है तब प्रज्ञा जागती है। मेधा जागती है। जब प्रज्ञा जागृत होती है तब अनेक सचाइयां प्राप्त होती हैं, नई दृष्टि और नया ज्ञान प्राप्त होता है। अन्तर्दृष्टि जागने पर जिन सचाइयों का पता चलता है, उन सचाइयों का पता बाह्य दृष्टि में नहीं चलता। जिसने एकांतवास में रहना सीखा है, उसने प्रज्ञा जागरण के सूत्र को सीखा है। भीड़ आदमियों और पशुओं की नहीं होती, विचारों की भी बहुत भीड़ होती है। जिस दिन हम विचारों की भीड़ से मुक्ति पा लेते हैं, एकांतवास को साध लेते हैं, उस दिन सचमुच अन्तर्ज्ञान, आत्मदृष्टि और अन्तर्बोध जाग जाता है। दुःख-मुक्ति के सूत्र
दुःख से मुक्ति पाने का यह मार्ग मोक्ष का मार्ग है और उसके अनेक सूत्र है
तस्सेस मग्गो गुरुविद्धसेवा, विवज्जणा बालजणस्स दूरा।
सस्झायएगंतनिसेवणा य, सुत्तत्थसंचितणया धिई य।।
गुरु और वृद्धों की सेवा करना, अज्ञानीजनों का दूर से ही वर्जन करना, स्वाध्याय करना, एकांतवास करना, सूत्र और अर्थ का चिंतन करना तथा धैर्य रखना-यह मोक्ष का मार्ग है। इस मार्ग पर चलने वाला मनुष्य दुःख को पा लेता है, अपनी मंजिल को पा लेता है।
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