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________________ यह रास्ता है दुःख के अलविदा का ४४३ कहा गया, जिसमें त्याग नहीं है। जो छोड़ना नहीं चाहता, वह बाल है। जिसने त्याग करना नहीं सीखा, जिसकी व्रत-चेतना और विवेक-चेतना नहीं जागी, वह अध्यात्म दृष्टि में बाल है। उससे बचना चाहिए, दूर रहना चाहिए। उत्तराध्ययन सूत्र में कहा गया-खुडडेहिं सह संसग्गिं-क्षुद्रों के साथ संसर्ग मत करो, उनकी संगत में मत रहो। सत्संग पर बहुत बल दिया गया। क्षुद्रजनों की संगति से कोई ऐसी बात पकड़ में आ सकती है, जिससे सारा जीवन गड़बड़ा जाए। क्षुद्र व्यक्ति एक ऐसा शब्द कह देता है, जिससे सारा चिन्तन अस्त-व्यस्त हो जाता है। वह अवसर पर ऐसी बात कहता है, जिससे व्यक्ति असंतुलित बन सकता है। इस विवेक का होना बहुत आवश्यक है-व्यक्ति किसके साथ रहे और किसके साथ न रहे। श्रीमज्जयाचार्य ने भी इस बात पर बहुत बल दिया। दो प्रसिद्ध शब्द हैं-विनीत और अविनीत। जयाचार्य ने कहा-विनीत से संपर्क करो, अविनीत से संपर्क मत करो। अविनीत बाल होता है। संपर्क केवल विनीत व्यक्ति से ही करना चाहिए। अविनीत के संसर्ग की क्या परिणति होती है, इस सचाई को आचार्य भिक्षु ने एक मार्मिक कथानक से स्पष्ट किया है। परिणाम परामर्श दो बैल थे। एक मामा था और दूसरा भानजा। दोनों बैलगाड़ी से जुते हुए थे, गाड़ी चल रही थी। जंगल में मालिक ने गाड़ी को रोका, बैलों को विश्राम दिया। उधर से एक बुटकना गधा गुजरा। वह बहुत अड़ियल था, आलसी था। उसके मालिक ने परेशान होकर उसका कान काटकर जंगल में छोड़ दिया था। वह स्वच्छंद था, चालाक भी था। वह जंगल में घूमता, घास चरता। उसके और कोई काम था ही नहीं। शरीर में मोटा-ताजा बन गया। उसने देखा-दो बैल खड़े हैं। वह उनके पास आया। उसने कहा-'अरे! तुम कितने मूर्ख हो? तुम पर कितना भार लदता है। ऊपर से चाबुक पड़ते हैं। ऐसा क्यों करते हो?' ___ बैल बोले-'हम क्या करें? यही हमारी नियति है। हम जिस योनि में जन्में हैं, उसमें भार तो ढोना ही होगा।' गधा बोला-'तुम समझदार नहीं हो। यदि तुम मेरी बात मानो तो एकदम मुक्त हो जाओगे।' 'क्या तुम मुक्ति का उपाय जानते हो?' 'हां। 'वह क्या है?' 'जब चलों तब चलते-चलते बैठ जाना। एक बार मार पड़ेगी। पुनः उठकर कुछ दूर चलना और फिर भूमि पर पसर जाना। ऐसे तुम दो चार बार करोगे तो मालिक परेशान होगा। वह तुम्हें छोड़ देगा। तुम सदा-सदा के लिए मुक्त हो जाओगे। जंगल में हम सब साथ रहेंगे। हरी-हरी घास चरेंगे, ठंडा-ठंडा पानी पिएंगे, स्वच्छंदता से घूमेंगे, भार नहीं ढोना होगा, आनन्द का जीवन होगा।' गधे का प्रस्ताव बहुत मनभावन था। भानजा बैल समझदार था, मामा समझदार नहीं था। मामा बोला-'तुमने बहुत अच्छी बात कही है।' Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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