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महावीर का पुनर्जन्म
मार्ग?' गुरु बोले-'जाओ! तुम्हारी साधना हो चुकी।' शिष्य विस्मित रह गया-आपने कुछ बताया नहीं और साधना हो गई? गुरु ने कहा-'हां! तुम जा सकते हो। तुमने बहुत अप्रमाद से सारे कार्य संपादित किए। इस अप्रमाद की दृष्टि को बढ़ाते रहना। यही साधना है।' इस एक शब्द ने उसकी चेतना को जगा दिया। वह सचमुच बड़ा साधक बन गया।
गुरु भी बड़े विचित्र हुए हैं और शिष्य भी बड़े विचित्र हुए हैं। शिष्यों ने मार्ग की खोज में अपना सब कुछ समर्पित कर दिया। गुरु ने कहा, वही किया और वे साध्य को पा गए। गुरु की खोज, गुरु की सेवा और गुरु का मिलना बहुत मुश्किल है। अच्छा गुरु मिल जाए, सही मार्गदर्शक मिल जाए, सही मार्ग बताने वाला मिल जाए तो बहुत बड़ी उपलब्धि हो जाती है। ऐसा वैसा गुरु कोई काम का नहीं होता। कहा जाता है-बिल्ली ने अच्छा रूप देखकर बगुले को गुरु बना लिया। किन्तु बना कुछ भी नहीं। दोनों एक समान थे। बिल्ली की दृष्टि चूहों पर थी और बगुले की दृष्टि मछलियों पर। एक कवि ने इस दृष्टांत को बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति दी है
बिल्ली गुरु बगुली कर्यो, वरण उजलो देख।
पार किस विध उतरे, दोनां री गत एक।। वृद्ध-सेवा का महत्त्व
दुःख-मुक्ति का दूसरा उपाय है-वृद्धों की सेवा। वृद्ध के वचनों से लाभ उठाना दुःख-मुक्ति का एक मार्ग है। संस्कृत साहित्य में ऐसी कथाएं भरी पड़ी हैं-वृद्ध वानर की बात नहीं मानने से वानरों को कष्ट उठाना पड़ा। बूढ़े हंस की बात युवक हंसों ने नहीं मानी, हंस आपत्ति में फंस गए। वृद्ध कबूतर की बात युवा कबूतरों ने नहीं मानी, उन्हें गम्भीर विपत्ति का सामना करना पड़ा। संस्कृत साहित्य में ऐसी कथाएं प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होती हैं। उनका निष्कर्ष है-वृद्ध अनुभवी व्यक्ति के वचन का आदर करना चाहिए।
बहुत कठिन है वृद्ध-सेवा। आजकल वृद्धों की सेवा की नहीं किन्तु उन्हें छोड़ने की भावना विस्तार पा रही है। हिन्दुस्तान में अभी भी वृद्धों का बहुत सम्मान है किन्तु जहां शिक्षा बहुत बढ़ गई है, सुख-सुविधा बहुत बढ़ गई है, धन बहुत बढ़ गया है, स्वतंत्र चिन्तन बढ़ गया है वहां वृद्धों की स्थिति बहुत चिन्तनीय है। उन्हें अकेले में छोड़ दिया जाता है, भाग्य-भरोसे छोड़ दिया जाता है। सरकार उनकी व्यवस्था करे या वृद्ध आदमी स्वयं अपनी व्यवस्था करे। घरवालों का उनसे कोई लेना-देना नहीं होता। वे कभी-कभार उनसे मिलने चले आते हैं। हिन्दुस्तान अभी इस स्थिति से बचा हुआ है। यदि वृद्धों की सेवा के संस्कार बने रहे तो हिन्दुस्तान अपनी गरिमा को बनाए रख सकेगा। बाल कौन?
दुःख-मुक्ति का तीसरा उपाय है-बाल से बचना। अवस्था से ही व्यक्ति बाल नहीं होता। जिनकी बुद्धि परिपक्व नहीं है, जिनमें समझ नहीं हैं, वे भी बाल हैं। उनका सम्पर्क दुःख का कारण बनता है। कहा गया-बालादपि
सुभाषितम् अच्छी बात बालक से भी सीख लेनी चाहिए। धर्मशास्त्र में बाल उसे Jain Education International For Private & Personal Use Only
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