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अंतरंग योग
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अध्यवसाय जगत या अंतरंग जगत तक नहीं पहुंच पाता। धार्मिक व्यक्ति घटना या प्रवृत्ति को अध्यवसाय के संदर्भो में देखता है। एक धार्मिक आदमी सोचेगा-मेरा अध्यवसाय पवित्र रहे, भाव पवित्र रहे किन्तु व्यवहार जगत की बात भिन्न होती है। व्यवहार जगत में यह नहीं देखा जाएगा-व्यक्ति का अध्यवसाय कैसा है? उसमें घटना या प्रवृत्ति के आधार पर ही निर्णय किया जा सकता है। जिस व्यक्ति को व्यवहार में जीना है और अंतरंग में भी जीना है, उसके लिए अंतरंग और बहिरंग दोनों का विवेक जरूरी है। जिस व्यक्ति में बहिरंग और अंतरंग का विवेक जाग जाता है, वह व्यक्ति सोचता है, मुझे व्यवहार में जीना है इसलिए मेरी बहिरंग साधना भी अच्छी होनी चाहिए। ऐसा न हो कि मेरा व्यवहार लोगों में उपहास का कारण बने। वास्तव में मुझे अंतरंग में जीना है, उसे पवित्र और विशुद्ध बनाना है। जिसकी यह दृष्टि बन जाती है, उसके सामने ये दोनों आयाम सदा स्पष्ट रहते हैं। वह अधिक से अधिक भीतर में जाने का प्रयत्न करते हुए भी व्यवहार की उपेक्षा नहीं करता। यह संभव है, जैसे-जैसे व्यक्ति भीतर में प्रवेश करता है वैसे-वैसे वह व्यवहार की कसौटियों पर ध्यान कम देने लग जाता है। उसका मनोबल इतना बढ़ जाता है कि वह व्यवहार की उपेक्षा कर देता है। एक सामान्य साधक के लिए यह जरूरी होता है कि वह अंतरंग और बहिरंग-दोनों का समन्वय करके चले। बल, बुद्धि और विवेक
हम इसे रूपक की भाषा में समझें। कहा जाता है-एक बार बल और बुद्धि-दोनों में विवाद हो गया। बल ने कहा- 'मैं बड़ा हूं। मेरे बिना कुछ भी नहीं होता। बद्धि ने कहा-'तम किसी काम के नहीं हो। मैं बडी हं। मेरे बिना तुम्हारी उपयोगिता ही क्या है?' दोनों इस विषय को लेकर उलझ गए। अपने इस विवाद का निपटारा करने के लिए वे विवेक के पास पहुंचे। बल और बुद्धि-दोनों ने अपनी-अपनी श्रेष्ठता बतलाते हुए न्याय करने की प्रार्थना की। विवेक ने अपने हाथ में एक हथौड़ा लिया और एक लोहे की कील ली। वह कील मुड़ी हुई थी, टेढी थी। विवेक उन दोनों को साथ लेकर चल पड़ा। वे तीनों एक वृद्ध व्यक्ति के पास पहुंचे। विवेक बोला-'महाशय! आप समझदार हैं, बुद्धिमान है और अनुभवी हैं। आप हमारा एक छोटा-सा काम कर दें।'
'आपका क्या काम है?' 'यह लोहे की कील टेढ़ी हो गई। आप इसे सीधी कर दें।' 'हां, कर दूंगा।'
विवेक ने वृद्ध व्यक्ति के हाथ में हथौड़ा थमा दिया। वृद्ध व्यक्ति ने हथौड़ा चलाना चाहा किन्तु वह उसे चला नहीं सका। उसका शरीर जर्जर था। उसके हाथ इस कार्य को करने में असमर्थ थे। उसने हथौड़ा लौटाते हुए कहा-'भाई! यह कार्य संभव नहीं है।'
विवेक ने बुद्धि से कहा-'देखो! बुद्धिमान होते हुए भी यह वृद्ध व्यक्ति इस छोटे से कार्य को नहीं कर सका।'
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