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बहिरंग योग
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जाता है। इन्द्रिय-शक्ति के क्षीण होने का अर्थ है शरीर की शक्ति का क्षीण होना। आयुर्वेद में और वर्तमान आयुर्विज्ञान में जीवन का सारा माप-जोख इन्द्रियों की क्षमता और शक्ति के आधार पर होता है। कहा जाता है-आंख की शक्ति, कान की शक्ति कम होने लग गई, इसका अर्थ है-जीवनशक्ति का हास होने लग गया। कान : एक महत्त्वपूर्ण अवयव
आयुर्वेद में तीन प्रकार के बल माने गए हैं—प्रथम कोटी का बल, द्वितीय कोटी का बल और तृतीय कोटी का बल। किसी व्यक्ति में किस कोटी का बल है, इसका सारा माप इन्द्रियों की शक्ति पर निर्भर है। वैद्य सबसे पहले नाड़ी देखेगा, नख देखेगा, आंख देखेगा। कान के आधार पर भी अनेक निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं। हमने कान पर बहुत कम ध्यान दिया है, किन्तु यह बहुत शक्तिशाली केन्द्र है। एक प्रकार से कान सारे शरीर को चलाने वाला, विचार
और बुद्धि पर नियन्त्रण करने वाला है। कुछ दिन पहले एक लेख देखा, जिसका शीर्षक था-कान खिंचाइए, बुद्धि बढ़ाइए। प्राचीनकाल में गुरु अपने शिष्यों का कान खींचते थे। वह कोई निकम्मी बात नहीं थी। कान संवेगों का नियंत्रण करने वाला है, वासना और वृत्तियों का नियन्त्रण करने वाला है।
साधना के क्षेत्र में इन्द्रिय-शुद्धि का बहुत मुल्य है। इन्द्रिय-शद्धि का अर्थ है–प्रतिसंलीनता। पतंजलि ने अष्टांग योग में प्रत्याहार का जो स्थान है, वह जैन साधना पद्धति में प्रतिसंलीनता का है। प्रत्याहार का अर्थ है-अपनी इन्द्रियों की शक्ति को भीतर रखना। व्यक्ति आंख से देखता है पर ध्यान करने वाला आंखों को देखेगा। सामान्य व्यक्ति कान से सनता है किन्त ध्यान करने वाला व्यक्ति कान में सुनेगा। इन्द्रियों के भीतर देखना प्रतिसंलीनता है। इन्द्रियों की दिशा को बदल देना. उसके मार्ग को बदल देना ही प्रतिसंलीनता है।
प्रतिसंलीनता अन्तरंग योग में प्रवेश करने का दरवाजा है। इन्द्रियों को भीतर की ओर मोड़ो, आयाम बदल जाएगा। जब तक इन्द्रियां बाहर की ओर दौडेंगी. आयाम बाहर का रहेगा। जब उन्हें मोड़ मिलेगा, भीतरी आयाम खुल जाएगा।
बहिरंग तपोयोग के छह प्रकारों को हम इन तीन सूत्रों में समेट सकते हैं-आहार-शुद्धि, काय-सिद्धि और इन्द्रिय-शुद्धि। जो व्यक्ति इन तीन तत्त्वों को अपनाए बिना आनन्द को पाना चाहता है वह आनन्द पाने में सफल नहीं होता। जो व्यक्ति यह कहता है-जब तक तैरना नहीं सीखूगा तब तक नदी में नहीं उतरूंगा, वह व्यक्ति कभी तैरना नही सीख पाता। अन्तरंग योग में प्रवेश पाने के लिए, के क्षेत्र में आगे बढ़ने के लिए इस क्रम से चलना जरूरी है। जो व्यक्ति अपने साहस और संकल्प को बटोर कर बहिरंग योग को जी लेता है, इस पहले आयाम को पार कर लेता है, वह अन्तरंग योग में प्रवेश पा लेता है। उसके जीवन में नए-नए उन्मेष आने लग जाते हैं, उसका जीवन अधिक आनदमय और अधिक सुखमय बन जाता है। बहिरंग तपोयोग को जीने का अर्थ है-जीवन के समग्र रहस्यों को जानने की दिशा का उद्घाटन।
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