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________________ ४२६ महावीर का पुनर्जन्म नियंत्रण किया जा सकता है। हमारा सारा जीवन नाड़ीतंत्र पर टिका हुआ है। अनुकम्पी नाड़ीतंत्र, परानुकंपी नाड़ीतंत्र और केन्द्रीय नाड़ीतंत्र-नाड़ीतंत्र के ये तीन विभाग हैं। इन्हें प्रभावित करने वाले आसनों का पता चल गया है। आसन अन्तःस्रावी ग्रन्थियों को भी प्रभावित करते हैं। आसन से ग्रन्थितंत्र को प्रभावित कर बहुत लाभ उठाया जा सकता है। यदि थाइरायड को प्रभावित करना चाहते हैं, थाइराइड की समस्या से बचना चाहते हैं तो सर्वांगासन से कोई उत्तम आसन नहीं है। थाइरायड के लिए दवा ली जाती है किंतु सर्वांगासन किसी प्रतिक्रिया को जन्म दिए बिना उसे लाभ पहुंचाने वाली औषध है। यदि एड्रीनल ग्रन्थि पर नियन्त्रण करना है तो शशांकासन उसके लिए महत्त्वपूर्ण है। महावीर जैसे बड़े साधक की साधना का विश्लेषण करें तो वे वीरासन, वज्रासन आदि-आदि आसन-मुद्राओं में ध्यानस्थ मिलते हैं। हम यह बात न भूलें-पाचनतंत्र, नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितंत्र-इन सबको संतुलित करने के लिए आसनों की अनिवार्यता है। इनका संतुलन आसनों के साथ जुड़ा हुआ है। इनका संतुलन साधने वाला आसनों को छोड़ नहीं सकता। नाड़ियां शुद्ध हों। साधना के लिए आहार-शुद्धि और आसन-सिद्धि-दोनों का होना जरूरी है। जब तक यह शुद्धि और सिद्धि की बात नहीं आएगी तब तक शुद्ध साधना संभव नहीं बन पाएगी। कोई व्यक्ति ध्यान करना चाहे और आहार-शुद्धि तथा आसन-सिद्धि का ध्यान न रखे तो उसके लिए ध्यान भी बीमारी बढ़ाने वाला बन जाएगा। ध्यान करने वाले व्यक्ति की ऊर्जा जागती है, विद्युत जागती है। जब ऊर्जा और विद्युत जागती है तब भयंकर समस्या पैदा हो जाती है। जब ध्यान से पैदा होने वाली विद्युत या ऊर्जा ऊपर की ओर जाती है और शरीर शुद्ध तथा सिद्ध नहीं होता है तो भयानक स्थिति निर्मित हो जाती है। आदमी उसे संभाल नहीं पाता। ध्यान की पहली शर्त है-नाड़ियां शुद्ध हों। नाड़ियों का मतलब नाड़ीतंत्र नहीं है। उसका अर्थ है-प्राण के प्रवाह का पथ। हमारे शरीर में प्राण-प्रवाह के हजारों पथ बने हए हैं। जब तक नाडियां शुद्ध नहीं हैं, प्राण-प्रवाह के पथ शुद्ध नहीं हैं तब तक ध्यान का सम्यक् परिणाम नहीं आता। यदि शहर की गंदे पानी की नालियां शुद्ध नहीं हैं तो उनमें गंदा पानी जमता चला जाएगा और वह एक दिन पानी के प्रवाह को ही बंद कर देगा। नाड़ियों के शुद्ध न होने की स्थिति में ध्यान की भी यही परिणति होती है। ध्यान करने वाला व्यक्ति, साधना करने वाला व्यक्ति, सबसे पहले इस बात पर ध्यान केन्द्रित करे-आहार और शरीर को शुद्ध करना है। यह शुद्धि हजार बार पानी में गोता लगाने से नहीं होगी। इसे आसन और अशन के द्वारा ही पाया जा सकता है। जब आसनों के द्वारा संचित मल निकलता है तब काया शुद्ध बनती है। इन्द्रिय-शुद्धि साधना के लिए इन्द्रियों को पवित्र बनाए रखना जरूरी है। इन्द्रियां हमारे जीवन का महत्त्वपूर्ण अंग हैं। सारा जीवन इन्द्रियों की शक्ति के आधार पर मापा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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