SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 443
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ बहिरंग योग ४२५ कहेंगे-अनशन से शुरू करो, मत खाओ। टॉलस्टाय ने भी इस बात पर बल दिया। उन्होंने कहा-साधना का प्रारम्भ उपवास से होता है। उपवास या अनशन साधना का प्रथम बिन्दु है किन्तु व्यक्ति खाए बिना रह नहीं सकता। इस स्थिति में साधना में कौन आएगा? यह प्रश्न सहज हो सकता है किन्तु वास्तविकता यह नहीं है। वास्तविकता यह है-खाना छोड़े बिना साधना हो नहीं सकती। आयुर्वेद के आचार्य बतलाएंगे कि स्वास्थ्य के लिए उपवास करना जरूरी है। एक जैन आचार्य कहेगा-अपने आपको साधने के लिए उपवास करना जरूरी है। एक ओर नीरोगता, है, दूसरी ओर आंतरिक स्वास्थ्य है। मूलाराधना में बाह्यतप के पैंतीस परिणाम बतलाए गए हैं। उनमें एक परिणाम है-मित भोजन करने से नीरोगता आती है। आचारांग सूत्र में बतलाया गया-महावीर बीमार भी नहीं थे, रुग्ण भी नहीं थे फिर भी पूरा भोजन नहीं करते थे, इसका अर्थ है-कम खाना स्वास्थ्य का ही नहीं, साधना का भी महत्त्वपूर्ण अंग है। अनशन, ऊनोदरी, भिक्षाचरी और रसपरित्याग-निर्जरा के ये चारों भेद आहार-शुद्धि से जुड़े हुए हैं। कायसिद्धि जैन साधना पद्धति का दूसरा सूत्र है-कायसिद्धि। जब तक शरीर की सिद्धि नहीं होती, साधना के मार्ग में आगे नहीं बढ़ा जा सकता। सोना आंच में तपकर शुद्ध और पक्का बनता है। जब तक वह तपता नहीं है, कुन्दन नहीं बनता, मिट्टी के कणों के साथ मिला रहता है। इस शरीर को भी तपाना जरूरी है। इसे तपाए बिना साधना के क्षेत्र में आगे नहीं बढ़ा जा सकता। साधना के मार्ग में बहुत बाधाएं हैं। आलस्य शरीर से चिपटा हुआ महाशत्रु है। शरीर से चिपटा हुआ दूसरा शत्रु है नींद। नींद बहुत सयानी होती है। जहां निकम्मी बात आएगी, फिजूल गप्पें हांकी जाएंगी, वहां नींद नहीं आएगी। किन्तु जहां काम की बात आएगी, वहां नींद सताने लग जाएगी। साधना में एक बाधा है-द्वन्द्व । सर्दी-गर्मी, भूख-प्यास--ये सारे द्वन्द्व साधना में बाधक बनते हैं। इन बाधाओं को पार किए बिना साधना की बात कैसे सोची जा सकती है? बहिरंग योग का एक प्रकार बन गया-काय-क्लेश, काय-सिद्धि। जब तक कायसिद्धि नहीं होगी, बाधाओं का पार नहीं पाया जा सकेगा। जो व्यक्ति बद्ध-पद्मासन करेगा, उसे नींद कैसे सता पाएगी? बद्ध-पद्मासन के सध जाने पर नींद आने की सम्भावना ही नहीं रह पाएगी। जब व्यक्ति मयूरासन या सर्वांगासन करेगा तो नींद कहां से आएगी? केवल नींद का ही प्रश्न नहीं है, आसन करने से शरीर सधता है, साथ ही द्वन्द्वों को सहन करने की क्षमता उद्भूत हो जाती है। पतंजलि ने लिखा-आसन से द्वंद्वों को सहन करने की क्षमता विकसित हो जाती है। पता नहीं क्यों, आसनों का जितना मूल्य आंका जाना चाहिए था उतना मूल्य नहीं आंका गया। आहार-शुद्धि के बाद आसन-सिद्धि का मूल्य है। अशन और आसन-दोनों का स्वास्थ्य और साधना की दृष्टि से बहुत मूल्य है। विज्ञान ने आसन के संदर्भ में कुछ नए निष्कर्ष प्रस्तुत किए हैं। विज्ञान ने यह प्रमाणित किया है-किस आसन के द्वारा नाडीतन्त्र के किस भाग पर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy