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महावीर का पुनर्जन्म
प्रश्न हो सकता है-राग-द्वेष बहुत सघन हैं। कोई आदमी एक दिन में राग-द्वेष पर कैसे विजय पायेगा? यही जानने का बिन्दु है । राग-द्वेष पर विजय का मतलब यह नहीं है कि हम वीतराग बन जायेंगे, किन्तु हम राग को बांट लें। उसके हजारों प्रकार हैं। हम पहले एक इन्द्रिय को पकड़ें, आंख को पकड़ें। आंख से जुड़ी है राग की एक प्रणाली । हम संकल्प करें-चक्षु संबंधी राग पर नियंत्रण करना है । इस संकल्प की एक पद्धति हैं । हमने यह एक धारणा बना ली, एक मार्ग निश्चित कर लिया । चक्षु इन्द्रिय निग्रह के लिए हम संकल्प का प्रयोग करें । कायोत्सर्ग की मुद्रा में बैठ जाएं, प्रतिदिन संकल्प को बढ़ाते चले जाएं। एक दिन, दो दिन... दस दिन यह प्रयोग चले। एक दिन स्थिति यह आएगी - संकल्प प्रबल बनता चला जाएगा।' संविज्ञान की शक्ति बढ़ती चली जाएगी। जैसे-जैसे संविज्ञान बढ़ेगा, संवेदना स्वतः कम होती चली जाएगी।
कौन लेता है स्वाद ?
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प्रत्येक आदमी स्वादिष्ट चीज खाना चाहता है। सबसे स्वादिष्ट चीज किसे माना जाए? किसी के लिए घेवर स्वादिष्ट हो सकता है तो किसी के लिए जलेबी । एक आदमी को भोज में बुलाया गया। उसे जलेबी परोसी गई। जलेबी देखते ही उसकी भूख तीव्र हो गई। किसी ने पूछ लिया- 'कितनी जलेबी खाओगे?' उसने कहा- 'मैं दस मण जलेबी खा सकता हूं ।'
आ तो म्हारे आंकल बांकल, ई मैं पूरो रस।
खल खाऊं छह मण तो, आ खांऊ मण दस ।
आज रसगुल्ला, रसमलाई आदि को स्वादिष्ट माना जाता होगा। क्या एक साधक व्यक्ति, इन्द्रिय विजयी, रसगुल्ला न खाए ? स्वादिष्ट पदार्थ न खाए ? कुछ लोग यह तर्क भी देते हैं-आप यह नहीं खाते, वह नहीं खाते। उस चीज ने आपका क्या बिगाड़ा है? उन्हें क्यों नहीं खाना चाहिए? क्या उन्हें खाने में दोष है ? खाने में कोई आपत्ति नहीं है पर खाने की दृष्टि में अंतर रहता है। एक प्रचुर राग वाला व्यक्ति रसगुल्ला खा रहा है और स्वादविजय वाला व्यक्ति रसगुल्ला खा रहा है। घटना समान है, पर परिणाम भिन्न भिन्न होगा । स्वाद में डूबने वाला व्यक्ति सोचेगा, अहा! कैसा स्वाद है! वह स्वादानुभूति इतना डूब जाएगा कि पूरा स्वाद ले ही नहीं पाएगा। उसे पदार्थ का स्वाद नहीं आएगा? केवल आसक्ति का स्पर्श होगा। सही अर्थ में पदार्थ का स्वाद वह ले सकता है, जिसमें आसक्ति नहीं है, जो अनासक्त भाव से खा रहा है। जो आसक्ति से खाता है, वह खाता ही चला जाता है। वह न स्वाद पर ध्यान देता है और न मात्रा पर एक व्यक्ति ने बताया- 'हम बारात में गए। बारातियों को परोसे गए राजभोग । दो व्यक्ति राजभोग पर टूट पड़े। उन दो व्यक्तियों ने छह सौ राजभोग खा लिए ।' क्या एक समय में इतने राजभोग खाए जा सकते हैं? वस्तुतः वह खाना नहीं खा रहा है, आसक्ति को खा रहा है । एक साधक सीमित मात्रा में खाएगा, आवश्यकता से अधिक नहीं खाएगा, स्वाद की दृष्टि से नहीं खाएगा। वह स्वास्थ्य, साधना और संयम की दृष्टि ने खाएगा ।
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