________________
४२३
जीतो इन्द्रियों को
·
सामान्य आदमी भी इन्द्रियों से काम लेता है और साधक भी । एक द्रष्टा है और एक अद्रष्टा । एक भोगी है और एक त्यागी । एक खाता है शरीर को चलाने के लिए और एक खाता है आसक्ति की तृप्ति के लिए, भोग के लिए । यह अंतर आता है दृष्टिकोण से । महावीर ने इसी सूत्र को प्रस्तुत किया-वस्तु के प्रति होने वाली आसिक्त का त्याग, प्रिय-अप्रिय संवेदन का त्याग - हम इस बात को महत्त्व दें। दोनों बातें हमारे सामने हैं - अंगूरों की सुरक्षा और बाड़ की सुरक्षा । निमित्त की सुरक्षा और उपादान की सुरक्षा । यह बात समझ में आए तो इन्द्रिय-विजय का रहस्य समझ में आ सकता है। उसके लिए बहुत सारे आंतरिक और बाह्य प्रयोग निर्दिष्ट हैं। इन प्रयोगों को जाना जा सकता है, इनका आलंबन लिया जा सकता है। इनका आलम्बन लेने वाला ही इन्द्रिय-विजय के क्षेत्र में, केवल संविज्ञान चेतना के क्षेत्र में अपने चरण आगे बढ़ा सकता है ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org