SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 439
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ जीतो इन्द्रियों को काम और प्रसक्ति धारणा यह है— काम स्पर्शन इन्द्रिय का विषय है । चिन्तन करने पर लगता है, काम स्पर्शन इन्द्रिय का विषय नहीं है। स्पर्शन का कार्य दूसरा है । हवा ठण्डी लगी और मनोज्ञ भाव आया तो स्पर्शन इन्द्रिय का राग हो गया। हवा गर्म लगी, लू लगी तो अमनोज्ञ भाव आ गया। इसका विषय है- स्पर्श का अनुकूल तथा प्रतिकूल संवेदन । काम है कर्मेन्द्रिय से संबंधित । हमारी पांच ज्ञानेन्द्रियां हैं और पांच कर्मेन्द्रियां । उपस्थ, पाणि, मुख, पैर, मन- ये कर्मेन्द्रियां हैं। काम के कारण इन्द्रिय की प्रसक्ति बनती है । किन्तु काम अलग है और प्रसक्ति अलग है । प्रसक्ति का एक कारण है काम । दूसरा कारण है क्रोध । क्रोध के कारण इन्द्रियों की प्रसक्ति बढ़ती है, द्वेषात्मक प्रवृत्ति जन्म लेती है। किसी चीज को देखा और घृणा उभर आई। कभी-कभी ऐसी घृणा भी व्यक्ति के मन में उभर आती है कि उसे खाना तक अच्छा नहीं लगता । इसीलिए अघोरी साधना में इस बात पर बल दिया गया- किसी चीज से घृणा मत करो। कलकत्ता में हमने एक अघोरी साधक को देखा। उनको यह साधना कराई जाती है-इस दुनिया में अभक्ष्य कोई चीज नहीं है, घृणा करने योग्य कोई पदार्थ नहीं है । यह एक साधना का तत्त्व रहा - घृणा करने जैसा कुछ भी नहीं है। तुम किसी से घृणा मत करो । यह भी कहा गया - राग करने जैसा कुछ भी नहीं है। तुम किस पर राग करते हो? बौद्ध दर्शन में शव - दर्शन का प्रयोग रहा है। साधक को श्मसान में ले जाया जाता है, उसे मृत प्राणियों के कलेवर दिखाए जाते हैं। कहा जाता है तुम मुर्दे के एक-एक अवयव को देखो! वास्तव में यह है क्या? इस प्रकार के भाव पैदा करो, जिससे राग वर्जित हो जाए । इन्द्रिय - निग्रह ४२१ एक है राग पर विजय का प्रयोग और एक है घृणा पर विजय का प्रयोग । महावीर ने दोनों बातों को गौण किया । न ओघड़ साधना वाली बात पर बल दिया और न श्मसान साधना वाली बात पर । महावीर ने इस सूत्र को पकड़ा - यदि आध्यात्मिक बनना है, आध्यात्मिक चेतना को जगाना है तो केवल इन निमित्तों के आधार पर मत चलो। महावीर ने ज्यादा बल दिया उपादान पर । उन्होंने गौण को भी स्थान दिया पर ज्यादा ध्यान केन्द्रित किया जड़ पर, मूल उपादान पर । महावीर ने कहा - 'कोई घृणा पैदा करने वाली वस्तु हो सकती है। और कोई प्रियता पैदा करने वाली वस्तु । तुम्हें उससे क्या लेना है? तुम ध्यान दो अपने मनोज्ञ और अमनोज्ञ भाव पर । तुम इस भाव का निग्रह करो। तुम्हें मनोज्ञ पर राग नहीं करना है और अमनोज्ञ पर द्वेष नहीं करना है। तुम ऐसा करोगे तो इन्द्रिय का निग्रह हो जाएगा ।' हम कौटिल्य की भाषा को पढ़ें- 'काम, क्रोध, लोभ, मान, मद और हर्ष - ये सब इन्द्रिय की आसक्ति को पैदा करते हैं। इनका निग्रह करो, इन्द्रिय-विजय हो जाएगी।' महावीर ने कहा- 'राग-द्वेष का निग्रह करो, इन्द्रिय-विजय हो जाएगी। हम दोनों की भाषा को मिलाएं, कहां अंतर है? इन्द्रिय-विजय तभी संभव है, जब राग-द्वेष को जीतें, काम-क्रोध आदि को जीतें । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy