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________________ जीतो इन्द्रियों को ४१६ खुला है तो उसमें से आदमी भी आ सकता है, गधा भी आ सकता है। एक ही खिड़की है। खिड़की को बन्द करो तो प्रकाश और हवा नहीं आएगी। यदि उसे खोल दें तो आंधी भी आएगी, रेत भी आएगी। क्या ऐसा कोई विकल्प है, जिससे प्रकाश और हवा आए पर आंधी न आए, रेत न आए। क्या ऐसा कोई ढक्कन है? अध्यात्म के आचार्यों ने एक उपाय निकाला मनोज्ञ और अमनोज्ञ के. निग्रह का। आंख को बंद करने की जरूरत नहीं है। कान और जीभ को भी बन्द करने की जरूरत नहीं है। हम इन्द्रियों से काम लेंगे क्योंकि हमारे ज्ञान के वे ही स्रोत हैं। हमारा ज्ञान आता कहां से है? बाह्य जगत को जानने का, उसके साथ सम्पर्क स्थापित करने का पहला माध्यम है इन्द्रिय चेतना। यदि इन्द्रियां न हो तो जगत का क्या अर्थ रह जाएगा? एक आदमी को सुनाई नहीं देता। उसके लिए प्रवचन का कोई अर्थ है? जिसे सुनाई नहीं देता, उसके लिए जगत का एक हिस्सा कट गया। जो गूंगा और बहरा-दोनों होता है, उसके लिए जगत का एक बहुत बड़ा हिस्सा कट जाता है। एक बहरा आदमी कैसी-कैसी कल्पनाएं करता होगा? उसके लिए कहा कुछ जाता है और वह उसका अर्थ कुछ निकाल लेता है। आंख है देखने का माध्यम, कान है सुनने का माध्यम और जीभ है बोलने का माध्यम। जिसके ये तीनों नहीं हैं, उसके लिए जगत् का होना न होने जैसा हो जाता है। इन्द्रिय-विजय क्यों? प्रश्न हो सकता है-इन्द्रियों को जीतने की बात क्यों सोचें? उनके विकास की बात सोचनी चाहिए। इन्द्रियों के संदर्भ में दो शब्द प्रयुक्त होते हैं-पटुता और अपटुता। जिसमें इन्द्रिय-पटुता होती है, वह बहुत ज्ञानी बन जाता है। संभिन्नस्रोतोलब्धि इन्दिय पाटव का ही विकास है। जिसने इन्द्रिय का इतना विकास कर लिया, वह हजार कोस दूर की चीज देख लेता है, इतनी दूरी की आवाज सुन लेता है। जिस इन्द्रिय में इतना पाटव है, उसका द्वार रोकने की जरूरत ही नहीं है। हम इन्द्रिय-विजय की बात को समझें, उसका हृदय समझें, जिससे इन्द्रियों को कोसने की जरूरत न पड़े। बादशाह ने बीरबल से कहा-'जिसके आगे वान शब्द लगता है वह बड़ा निकम्मा और अड़ियल होता है। जैसे गाड़ीवान, धनवान-ये सब अड़ियल प्रकृति के होते हैं। तुम दीवान हो, तुम्हारे आगे भी वान लगता है इसलिए तुम भी वैसे ही हो।' बीरबल ले तपाक से उत्तर दिया-'मेहरवान! आप ठीक फरमा रहे हैं।' बीरबल यह कहकर बादशाह को अपनी कोटि में ले आया। बादशाह यह सुन अवाक रह गया। जब हम बिना सोचे समझे कोई बात कहते हैं तब ऐसा ही होता है। इन्द्रिय-विजय क्या है? इस संदर्भ में उत्तराध्ययन सूत्रकार ने एक महत्त्वपूर्ण सूचना दी है-'श्रोत्र आदि इन्द्रियों के निग्रह से जीव मनोज्ञ और अमनोज्ञ शब्द आदि विषयों में होने वाले राग और द्वेष का निग्रह करता है। वह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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