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धागे में पिरोई हुई सूई
४१७ सूई भी चलती है और कैची भी चलती है। सूई चलती है तो सांधती चली जाती है और कैंची चलती है तो काटती चली जाती है। सूई सरल होती है और कैंची वक्र। हम ज्ञान को धागे में पिरोई हुई सूई की तरह उपयोग करें, सरलता से चलें, साधते और जोड़ते चले जाएं, किसी को कैंची की तरह तोड़ें या काटें नहीं। यदि ऐसा कर पाएं तो ज्ञान-संपन्नता हमारे जीवन के लिए वरदान बन जाएगी।
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