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महावीर का पुनर्जन्म
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है और फिर काले नागों से खेलती है। सांपो को कैसे पकड़ा जाता है, यह नियम उसने जान लिया । काले नाग को पकड़ना बहुत खतरनाक है पर उसके लिए नहीं है, जो नियम को जानता है । वह सांपों को पकड़ती है, उनसे खेलती है, लोगों का मनोरंजन करती है। यह सब संभव होता है नियमों के ज्ञान से । भाग्य का निर्माता कौन ?
योगक्षेम वर्ष का एक उद्देश्य रहा - ज्ञान - संपन्न व्यक्तियों का निर्माण । यदि हम ज्ञान - संपन्न हो गए, नियम और वास्तविकता को जान लिया, जीवन की सचाइयों और रहस्यों को जान लिया तो हमारा पचास प्रतिशत कार्य पूरा हो गया। शेष बचता है पचास प्रतिशत । उसमें से पच्चीस प्रतिशत पुरुषार्थ को दे दें और पच्चीस प्रतिशत भाग्य को । यदि नियम के साथ पुरुषार्थ नहीं जुड़ेगा तो कार्य पूर्ण नहीं होगा । यदि हम नियमों को जान लें, संकल्प और पुरुषार्थ प्रबल हो तो भाग्य अपने आप साथ देगा । यदि भाग्य नहीं है तो भी उसका निर्माण होता चला जाएगा। आदमी अपने भाग्य का निर्माण स्वयं करता है । ऐसा नहीं है कि सब व्यक्ति अपना भाग्य साथ लेकर ही आते हैं। मनुष्य भाग्य साथ लेकर भी आता है और उसका निर्माण भी करता है । जैन दर्शन आत्म-कर्तृत्ववादी है । उसे मानने वाला अपने पुरुषार्थ पर भरोसा करता है ।
पुरुषार्थ और भाग्य में अंतर कहां है, हम यह भी जान लें । वर्तमान का पुरुषार्थ पुरुषार्थ कहलाता है और अतीत का पुरुषार्थ भाग्य । भाग्य हमारे पुरुषार्थ का ही रूप है। यदि हमने अच्छा पुरुषार्थ किया है तो हमारा भाग्य बन गया और गलत पुरुषार्थ किया है तो वह हमारा दुर्भाग्य बन गया । भाग्य या दुर्भाग्य बनता है हमारा ही पुरुषार्थ । भाग्य का उत्पादन करता है पुरुषार्थ । यदि ज्ञान, पुरुषार्थ और भाग्य – ये तीनों मिल जाएं तो जीवन का अभ्युदय निश्चित है । सूई में धागा
उत्तराध्ययन सूत्र में ज्ञान के बारे में कितना मार्मिक दृष्टांत दिया है धागे और सूई का । सूई में धागा कैसे पिरोया ? हम जानते हैं- जिस वैज्ञानिक ने सिलाई मशीन बनाई, उसने इस समस्या को कैसे सुलझाया होगा - सूई में धागा कहां पिरोया जाए? उसे इस उलझन का समाधान मिला सपने में। प्रश्न है - जिसने यह मार्ग निकाला, वह कितना ज्ञानी रहा होगा । यदि यह नियम ज्ञात न होता तो सूई अलग रहती और धागा अलग। क्या कभी सिलाई होती? क्या कभी वस्त्र सिला जाता? वह व्यक्ति निश्चित ही ज्ञानी रहा है, जिसने सुई और धागे की कल्पना को आकार दिया। सुई में छेद किया और उसमें धागा पिरोया । बिना धागे सुई का कितना मूल्य है? धागे में पिरोई हुई सुई ही काम आती 1 सूत्र के दो अर्थ होते हैं। उसका एक अर्थ है धागा और दूसरा अर्थ है - ज्ञान। जिसने ज्ञान को अपने मन में पिरो लिया, अपने जीवन में पिरो लिया, वह अपने जीवन में उतना ही सफल होता है, उतनी ही तेज गति से चलता है जितनी तेज गति से सूई चलती है । शर्त यही है कि उपयोग ठीक होना चाहिए ।
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