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महावीर का पुनर्जन्म
काम आएगा अन्यथा ऐसे ही पड़ा रह जाएगा। भाग्य की भी यही बात है। यदि हम पुरुषार्थ करेंगे तो भाग्य जाग जाएगा। अन्यथा सोया का सोया रह जाएगा। भाग्य उसी व्यक्ति का जागता है, जो पुरुषार्थ करता है। ज्ञान, भाग्य और पुरुषार्थ-तीनों एक शंखला से
एक राजा ने घोषणा की-'मैं प्रधानमंत्री की नियुक्ति करना चाहता हूं। वह व्यक्ति प्रधानमंत्री बन पाएगा, जो मेरी परीक्षा में उत्तीर्ण होगा। परीक्षा यह है-जो व्यक्ति प्रधानमंत्री बनना चाहता है उसे एक कमरे में बंद कर बाहर ताला लगा दिया जाएगा। जो उस ताले को खोलकर बाहर आ जाएगा, वह प्रधानमंत्री वनेगा।' प्रधानमंत्री बनने की बात सुन अनेक लोगों का मन ललचाया पर परीक्षा की बात सामने आते ही यह चाह मिट गई। अनेक लोगों ने कहा-यह असंभव शर्त है? क्या सब मानतुंगाचार्य हैं? आचार्य मानतुंग को अड़चास तालों के भीतर बन्द कर दिया गया। एक-एक श्लोक बोलते गए और एक-एक ताला टूटता चला गया। आज ऐसा कौन मानतुंग है, जो एक श्लोक पढ़े ओर ताले को तोड़ कर बाहर आ जाए। कौन मंत्रविद् है, कौन भक्तामर जैसे का रचयिता है, जो इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो जाए, यह असंभव बात है प्रत्येक व्यक्ति के लिए। कैसे संभव होगा इस शर्त को पूरा करना? अनेक लोगों के मन में ऐसे विकल्प उठे
और वे शर्त सुनकर ही प्रतियोगिता से बाहर हो गए। चार व्यक्तियों ने इस घोषणा को स्वीकार करते हुए कहा-'हम इस शर्त को स्वीकार करते हैं।'
राजा ने पूछा-'क्या तुमने अच्छी तरह से सोच लिया है।' चारों उम्मीदवारों ने स्वीकृति सूचक सिर हिलाया। राजा ने चारों व्यक्तियों को चार कमरों में बंद कर ताला लगा दिया। तीन व्यक्तियों ने सोचा-हम फंस गए। हमने मूर्खता की है। जब-जब हम लालच में जाते हैं, मूर्खता कर बैठते हैं। क्या यह संभव है? चौथा व्यक्ति बहुत समझदार और चिन्तनशील था। वह नियम को जानने वाला था, ज्ञानी था। जो ज्ञानी होता है, वह कभी निराश नहीं होता। उसने सोचा-राजा इतना मूर्ख नहीं है, जो इस प्रकार के असंभव कार्य की घोषणा करे। उसने केवल हमारी परीक्षा के लिए ही घोषणा की है। न ताला होगा और न अर्गला होगी, केवल दरवाजा बंद होगा।
उसी समय घोषणा हुई-सब लोग दरवाजे को खोल कर बाहर आएं। चारों ने घोषणा सुनी। तीनों निराश हो चुके थे। वे हाथ पर हाथ धर कर बैठे रहे। चौथा व्यक्ति खड़ा हुआ, आगे बढ़ा और दरवाजे को जोरदार धक्का दिया। दूसरे ही क्षण दरवाजा खुल गया। राजा स्वागत के लिए तैयार खड़ा था। उसने उस व्यक्ति को प्रधानमंत्री पद पर नियुक्त कर दिया। ज्ञान, भाग्य और पुरुषार्थ
हम इस सचाई को समझें-नियम-सापेक्ष है पुरुषार्थ और पुरुषार्थ-सापेक्ष है भाग्य। समस्या के समाधान के लिए, जीवन की सफलता के लिए ज्ञान, पुरुषार्थ और भाग्य–तीनों का होना बहुत आवश्यक है। भाग्य है, पुरुषार्थ नहीं है तो कुछ भी नहीं बनेगा। भाग्य भी है, पुरुषार्थ भी है और ज्ञान नहीं है तो भी कुछ भी संभव नहीं बनेगा। आज जितना टेक्नालाजी का विकास हुआ है,
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