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धागे में पिरोई हुई सूई
पुरुषार्थ
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समस्या के समाधान का दूसरा सूत्र है - पुरुषार्थ । नियम या सत्य को जान लेने मात्र से ही समस्या नहीं सुलझती और केवल पुरुषार्थ से भी समस्या समाहित नहीं होती । नियम- सापेक्ष है पुरुषार्थ । पुरुषार्थ होना चाहिए नियम के आधार पर । यदि नियम को छोड़कर पुरुषार्थ करेंगे तो वह सफल नहीं होगा।
एक आदमी को कुएं से पानी निकालना था । उसने पानी भरने के लिए बाल्टी को अंदर डाला । बाल्टी में पानी भरता पर ऊपर पहुंचते-पहुंचते वह खाली हो जाता। उसने सोचा- क्या बात है? पानी ऊपर क्यों नहीं आ रहा है? उसने देखा - जिस बाल्टी से वह पानी निकाल रहा है, उसके पैंदे में छेद ही छेद हैं। वह इस सचाई को भूल गया- जिस बाल्टी में छेद होंगे, उसमें कैसे पानी टिकेगा ?
यह नियम का अज्ञान पुरुषार्थ को सफल नहीं होने देता। नियम का अतिक्रमण कर जो पुरुषार्थ किया जाता है, वह विफल हो जाता है। नियमों से जुड़ा पुरुषार्थ ही कार्यकारी बनता है । ज्ञानहीन या विवेकहीन पुरुषार्थ छेद वाली बाल्टी से पानी निकालने जैसा होता है । समस्या के समाधान के लिए इस सचाई का बोध आवश्यक है-पुरुषार्थ नियम- सापेक्ष होना चाहिए ।
भाग्य
समस्या के समाधान का तीसरा सूत्र है-भाग्य । पुरुषार्थ - सापेक्ष है भाग्य । बहुत लोग भाग्य के भरोसे बैठे रहते हैं । यह भरोसा अच्छा नहीं है। भाग्य जागता है पुरुषार्थ के द्वारा । पुरुषार्थ के बिना भाग्य भी काम नहीं करता, चाहे वह कितना ही अच्छा लिखा हुआ हो । ज्योतिषी ने बताया- 'तुम्हारे ग्रह नक्षत्र बहुत अच्छे हैं । तुम्हारा भाग्य प्रबल है ।' यदि व्यक्ति यह जानकर पुरुषार्थ न करे तो भाग्य निकम्मा चला जाएगा।
हम कर्मशास्त्रीय दृष्टि से विचार करें। हमारा क्षयोपशम भाव निरन्तर पुरुषार्थ के साथ चलता है । पुरुषार्थ बंद हो जाता है तो क्षयोपशम भी बंद हो जाएगा। इस सचाई को एक सुन्दर उदाहरण से समझाया गया है कर्मशास्त्र में । एक आदमी नदी में तैरने के लिए गया। उसने नदी में गहरी डुबकी लगाई। बहुत नीचे चला गया। उसने ऊपर की ओर देखा तो आकाश दिखाई नहीं दिया। बीच में चारों ओर शैवाल छाई हुई थी। वह कुछ ऊपर आया, उसने अपने हाथ से शैवाल को हटाया, आकाश दिखने लगा। जब तक हाथ हिलाकर शैवाल को दूर हटाता रहा तब तक आकाश दिखाई देता रहा। जैसे ही उसने हाथ हिलाना बंद किया, शैवाल फिर छा गई। उसे आकाश दिखना बंद हो गया । शैवाल की परत इतनी मोटी होती है कि उसके छा जाने पर कुछ भी दिखाई नहीं देता । यदि आकाश को देखना है तो हाथ को हिलाते रहना होगा। हाथों को हिलाते चले जाएं, शैवाल को हटाते चले जाएं, आकाश दिखाई देता रहेगा । जैसे ही हाथों को हिलाना बंद करेंगे, आकाश दिखाई देना बंद हो जाएगा। यही स्थिति क्षयोपशम की है। यदि हम पुरुषार्थ करते रहेंगे तो क्षयोपशम काम देता रहेगा । कहा जाता हैं— क्षयोपशम अपने आप में ढीला-ढाला है। उसे हम काम लेंगे तो
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