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________________ धागे में पिरोई हुई सूई प्रधानाचार्य के पास एक अभिभावक आया। उसने कहा- 'अध्यापकजी ! मैं अपना लड़का आपको सौंपता हूं। उसे पढ़ाना है । समस्या यह है - लड़का जल्दी पढ़ना चाहता है । आप परीक्षा लेते हैं । उसमें बहुत लंबा समय लग जाता है। आप मेरे लड़के को कम समय में पढ़ा दें, क्योंकि वह जल्दी ही कुछ होना चाहता है ।' ६७ प्रधानाचार्य ने कहा - 'पहले आप यह निश्चय कर लें कि आपका लड़का क्या चाहता है? वह आम का पेड़ बनना चाहता है या बाजरी का पौधा ? यदि बाजरी का पौधा बनना चाहता है तो तीन माह लगेंगे। यदि आम का पेड़ बनना चाहता है तो बारह बरस लगेंगे ।' प्रश्न है निर्णय का हम क्या बनना चाहते हैं? कुछ लोग बहुत जल्दबाजी करते हैं । हमारा पुरुषार्थ काल - सापेक्ष है। बाजरी बनना है तो कोई कठिनाई नहीं है। बाजरी जेठ या आषाढ़ माह में बोई जाती है और भादवा - आसोज में काट ली जाती है। अधिक से अधिक तीन या चार महीना लगता है, फसल तैयार हो जाती है । यदि आम बनना है तो समय का नियोजन अधिक करना पड़ेगा। तीन चार माह से काम नहीं चलेगा। पुरुषार्थ काल - सापेक्ष है, यह एक नियम है। इस नियम को जानकर ही कुछ होने की बात सफल हो सकती है । सत्य का अर्थ है नियमों का ज्ञान। लोग उसे चमत्कार मान लेते हैं, जिसका नियम नहीं जानते । यदि नियम जान लें तो काई चमत्कार नहीं है । हाथ में रेशम का कपड़ा है। उसके नीचे मूंगा रखा हुआ है। उसके ऊपर जलता हुआ अंगारा रखा जाए तो कपड़ा नहीं जलेगा। सामान्य आदमी सोचता है— कपड़े पर जलता हुआ अंगारा रखा पर कपड़ा जला नहीं। यह कितना बड़ा चमत्कार है । वस्तुतः चमत्कार कुछ नहीं है । यह एक नियम है-जब मूंगा नीचे है तो कपड़ा जलेगा नहीं, ऊष्मा को खींच लेगा । ऐसे कितने नियम हैं, जो अज्ञात बने हुए हैं । मनुष्य के अपने सार्वभौम नियम है, प्राणी और पदार्थ के अपने सार्वभौम नियम हैं । जो नियम को नहीं जानता, उसके लिए वे समस्या और चमत्कार है। जो नियम को जानता है, उसके लिए न कोई समस्या है और न कोई चमत्कार । माईक चल रहा था। अचानक खराब हो गया। यदि कहा जाए- किसी किसान को बुलाकर इसे ठीक करवा लो। क्या किसान उसे ठीक कर पाएगा? कार चल रही है। इंजन खराब हो गया। क्या एक वस्त्र - व्यापारी उसकी खराबी दूर कर Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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