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महावीर का पुनर्जन्म
राजा का मंत्रीमडंल विशाल था। पचास-साठ हाथों से गुजरते-गुजरते वह वर्फ राजा के हाथ में पहुंची। राजा ने देखा---'दो किलो बर्फ रसगुल्ले जितनी रह गई है।'
___ मंत्री ने राजा से निवदेन किया-'राजन! मैंने आपके प्रश्न का उत्तर दे दिया है।
राजा ने विस्मय भरे स्वर में कहा-'मंत्रीवर! मैं कुछ नहीं समझ पाया।'
'राजन! पहले मंत्री के हाथ में शिला आई, वह दो किलो थी। वह आगे से आगे चलती गई, पिघलती गई और पिघलते पिघलते बर्फ की छोटी सी डाली रह गई। राजन! प्रजा से धन आता है। वह पहले एक मंत्री के पास पहुंचता है, फिर दूसरे-तीसरे के पास पहुंचता है। उनके हाथों से गुजरते गुजरते वह बर्फ की डली जितना ही खजाने में पहुंच पाता है।'
ऐसा क्यों होता है? जहां सहाय-सापेक्षता होती है, सहायकों पर निर्भरता होती है, वहां यही स्थिति बनती है। सहाय लेना जीवन की अनिवार्यता है, उसके बिना काम चलता नहीं है पर यह विवेक जरूरी है-अनिवार्य सहाय ही लें, उसका अधिक से अधिक प्रत्याख्यान करें। यह स्वावलंबन का महत्त्वपूर्ण सूत्र है। कहा गया-सहाय-प्रत्याख्यान से जीव अकेला होता है। अकेले का मतलब है समर्थ होना। जो समर्थ होता है वह अकेला रहना जानता है। केवलज्ञान निरपेक्ष होता है। उसे किसी सहाय्य की अपेक्षा नहीं होती। शेष चारों ज्ञान सापेक्ष होते हैं। केवल केवलज्ञान ही ऐसा है, जो सहाय्य निरपेक्ष होता है। यह शक्ति-संवर्धन का मूल्यवान सूत्र है। समस्या यह है-त्याग का मूल्य आंका नहीं गया। यदि प्रत्याख्यान का मूल्य आंका जाए तो समस्या के मूल का उच्छेद हो जाए।
आंतरिक शक्ति को बढ़ाने वाला त्याग से बड़ा कोई टॉनिक नहीं है। लोग बहुत टॉनिक लेते हैं, वे शरीर-शक्ति को बढ़ाते हैं। आंतरिक शक्ति को जगाने वाला टॉनिक यही है। हम इस सचाई को समझें-जिसमें छोड़ने की शक्ति नहीं है, प्रत्याख्यान की शक्ति नहीं है, वह दुनिया का सबसे दुर्बल और कमजोर आदमी है। शक्तिशाली और समर्थ वह है, जिसे छोड़ने की शक्ति, प्रत्याख्यान की शक्ति प्राप्त है।
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