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________________ ४०४ महावीर का पुनर्जन्म पर ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोह और अंतराय कर्म के परमाणु चिपके हुए हैं। उनकी एक आग जल रही है। उसका उत्ताप भयंकर है। कर्म-विपाक निरंतर उदय में आ रहा है। कभी ज्ञानावरणीय की आंच, कभी मोहनीय कर्म की आंच प्रबल बन जाती है। इस पर मन का दूध भाव के बर्तन में रखा हुआ है। क्या वह उफनेगा नहीं? वह बर्तन को छोड़कर भागना शुरू कर देगा। तब तक भीतर की आग, कर्म विपाक भट्टी जल रही हैं, तब तक भाव के बर्तन में अवस्थित मन का दूध शान्त नहीं होगा। यदि हम कर्म विपाक को समझ लें, भावों को संतुलित रखना जान लें, भाव शुद्धि का अभ्यास कर लें तो यह बछड़ा हमेशा खंटी पर बंधा रहेगा। यदि इन सब बातों को न समझें तो यह मन रूपी वछडा रस्सी तुड़ाकर जंगल में भाग जाएगा। स्थिति यह बनेगी-आगे-आगे बछड़ा दौडेगा और पीछे पीछे उसका मालिक। इस परिस्थिति में ही मन समस्या बनता हम मन को एक आलम्बन पर टिकाने का अभ्यास करें। उसका एक साधन है श्वास प्रेक्षा। श्वास को देखना कोई धर्म की बात नहीं है पर वह धर्म की वात बन जाती है। इसका कारण यह है-श्वास को देखने का मतलब है ज्ञाता-द्रष्टा होना। न राग, न द्वेष, केवल श्वास की प्रेक्षा। हम श्वास का आलम्बन लें, अहम् का आलंबन लें और इन पर मन को टिकाने का अभ्यास करें। ये ऐसे पवित्र आलंबन हैं जिन पर मन को टिकाना चंचलता की समस्या को मिटाना है। मैं यह मानता हूं-जो व्यक्ति बीस मिनट तक एक आलंवन पर टिकने लग जाता है, उसका ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोह और अंतराय कर्म अपने आप श्लथ होना शुरू हो जाता है। जरूरी है पवित्र आलंबन और अभ्यास। जिसने अभ्यास नहीं किया, वह तीन जन्म में भी शायद मन को टिका नहीं पाएगा। जिसने मन को टिकाने के लिए पवित्र आलंबन का अभ्यास किया है, वह तीन दिन में ही मन को एक बिन्दु पर टिकाने में सफल हो जाएगा और इस भाषा में बोलेगा-मन चंचल नहीं है। 'किसने कहा मन चंचल है'–यह सचाई साक्षात हो जाएगी। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003109
Book TitleMahavira ka Punarjanma
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year
Total Pages554
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size11 MB
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