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किसने कहा मन चंचल है?
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बछड़ा चक्कर लगा रहा है, खूटे के चारों ओर दौड़ रहा है। वह स्थिर नहीं हुआ पर जो बछड़ा चारों और दोड़ रहा था, उसे एक खूटे से बांध दिया गया। वह उसकी परिधि में ही चक्कर लगाएगा। मन को एकाग्र करने का अर्थ है-जो मन विभिन्न विषयों पर उछल-कूद मचा रहा है, उसे एक बिन्दु पर टिका दिया।
मन की दो अवस्थाएं हैं-अनेकाग्र मन और एकाग्र मन। वह शुभ भी होता है और अशुभ भी। मन की शुभ अवस्था महत्त्व की बात है। मन को एक शुभ आलंबन पर टिकाने का फल है-चित्तवृत्ति का निरोध। जितनी चित्तवृत्तियां हैं. वे निरुद्ध होने लग जाएंगी। प्रेक्षाध्यान का प्रयोजन क्या है? स्वाध्याय और ध्यान का प्रजोजन क्या है? इनका प्रयोजन यही है-मन को एक अच्छे आलंबन पर टिका दें। स्वाध्याय में कुछ अधिक प्रवृत्ति है, ध्यान में ऐसे भी कम प्रवृत्ति हो जाती है। प्रश्न हो सकता है, निवृत्ति की बात कब संभव बनेगी? वह तब आएगी जब मन नहीं रहेगा। मन का होना कोई जरूरी नहीं है। मन की एक स्थिति है अमन। जहां अमन है वहां चैन है। बहुत सुन्दर शब्द है अमन-चैन। जब चित्तवृत्ति का निरोध होता है, तब मन होता ही नहीं है। इसका अर्थ है-हम मन को जब चाहें पैदा करें और जब चाहे समाप्त कर दें। मन को पैदा करना और समाप्त करना एक कला है। जो यह कला सीख लेता है, वह अनेक समस्याओं का समाधान पा लेता है।
सबसे बड़ी बात है एक आलंबन पर टिकना। मन इतना तरल और चंचल है कि एक आलंबन पर टिकता ही नहीं है। वह पानी की भांति तरल है। पानी में गंदगी डालो, वह गंदला हो जाएगा। उस पानी की बर्फ जमा दो, फिर गंदगी डालो. गंदगी उसे गंदला नहीं बना पाएगी। वह उस पर गिरेगी और लढक कर नीचे उतर जाएगी। बर्फ साफ एवं स्वच्छ बनी रहेगी। यदि पानी में गंदगी मिला दें तो उसे साफ करना आसान नहीं है। मन जितना ज्यादा तरल और चंचल रहेगा, उतनी ही ज्यादा गंदगी को ग्रहण करेगा, बाहरी प्रभावों में बह जाएगा। यदि मन को जमा दिया जाए, बर्फ की शिला जैसा बना दिया जाए तो गंदगी उसे गंदला नहीं बना पाएगी, वह प्रभावों से अप्रभावित बना रहेगा। प्रश्न आलंबन का
प्रश्न वही आता है-मन को कैसे जमाएं? सूत्रकार भी यही कहते हैं-एक अग्र पर मन का सन्निवेश करो। उसे एक आलम्बन पर कैसे स्थापित करें? मन अनेकाग्र क्यों होता है? तत्त्वार्थभाष्य की टीका में इस प्रश्न पर सुन्दर विचार किया गया है। एक व्यक्ति ने संकल्प किया-मैं दस मिनट केवल अहं पर ध्यान करूंगा। दो मिनट भी नहीं बीते, ध्यान भटक गया और भटकता ही चला गया। कभी व्यापार याद आ गया, कभी परिवार याद आ गया और कभी कुछ याद आ गया। न जाने कितनी बातें याद आ गई। ऐसा क्यों होता है?
आचार्य ने इस प्रश्न को समाहित किया एक दृष्टांत के द्वारा। आग जल रही है, ऊपर दूध का बर्तन रखा हुआ है। दूध का क्या होगा? वह उफनने लग जाएगा। जब तक आग जलती रहेगी, व्यक्ति के चाहने पर भी दूध का उफान शांत नहीं होगा। यही समस्या मन के साथ जुड़ी हुई है। हमारी आत्मा के प्रदेश
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